रूचक योगः-
मंगल अपनी ही राशि का होकर या मूल त्रिकोण अथवा उच्चराशि का होकर केन्द्र में स्थित हो, तो रूचक योग होता है।
फल:-रूचक योग में जन्म लेने वाला जातक शारीरिक दृष्टि से हष्ट पुष्ट और बलिष्ठ होता है। वह अपने कार्यो से संसार में प्रसिद्ध होता है तथा स्वयं के अतिरिक्त देश की कीर्ति को भी उज्ज्वल करता है। वह राजा होता है अथवा राजा के तुल्य अपना जीवन व्यतीत करता है।
ऐसा जातक अपने देश की संस्कृति एवं सभ्यता के प्रति पूर्णत जागरूक और उसकी उन्नति के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है।
अपने चुम्बकीय एवं प्रभावोत्पादक व्यक्तित्व के फलस्वरूप भक्त अथवा श्रद्धालुओं की भीड़ निरन्तर उसके इर्द-गिर्द रहती है तथा उसे सच्चे मित्र मिलते रहते है, जो सदेव उसके सहायक बने रहते है।
उसका चरित्र उच्चकोटि का होता है। वह किसी भी प्रकार के प्रलोभन या दबाव में नहीं आता। वह आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न रहता है उसे अपने जीवन में द्रव्य का कोई आभाव नहीं होता तथा वह दीर्घ आयु प्राप्त करता है। सेना या मिलिटरी में होने पर वह उच्च अधिकारी बनता है।
नोटः- ज्योतिष शास्त्र में पंच महापुरुष योग वर्णित है। इन पांचों में से कोई एक योग होने पर भी जातक महापुरुष होता है एवं देश विदेश में कीर्ति लाभ करता है।
इन पांच योगों के नाम- रूचक, भद्र , हंस, मालव्य और शश योग।
इन योगों का अध्ययन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए की सम्बंधित ग्रह निर्मल , अवैध, अवक्रि और 10 से 25 अंशो के बीच में हो क्योंकि 1 से 5 तक तथा 25 से 30 अंश निर्बल माने जाते है। 10 से 20 अंश सर्वोत्तम कहे गये है। 5 से 10 तथा 21 से 25 अंश ही श्रेष्ठ माने जाते है।
यदि ग्रह निर्बल हो तो सम्बंधित योग होने पर भी वह पूर्ण फल नहीं देता तथा न अधिक प्रभावशाली ही होता है।
ग्रह स्वराशिस्थ अथवा मूल त्रिकोणगत हो। आर्ष ऋषियों के मतानुसार-
मूल त्रिकोण निज तुंग गृह पयाता भोमज्ञ जीव सीत भानुसुता बलिष्ठ।। केन्द्र स्थिता यदि तदा रुच भद्रहंस मालव्य चारु शश योग करा भवन्ति।।
रूचक योग तभी सफल एवं श्रेष्ठ बनता है, जब मंगल बलिष्ठ होकर केंद्र में स्थित हो।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए