महा-शिवरात्रि
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शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनम्।
आचाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं॥
अर्थार्त महा-शिवरात्रि का परम पर्व की व्याख्या उक्त श्लोक में कुछ इस प्रकार की गयी है कि यह सभी पापो का शमन करने वाला तथा चंडाल मनुष्य को भी भुक्ति और मुक्ति दोनों प्रदान करता है
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चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम शुभ फलदायी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है, परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। जो की वर्ष 2018 में 13 फ़रवरी र्को है |
प्राचीन मान्यताओ के अनुसार समुद्र मंथन में निकले हला हल विष को महा-शिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया था, विष के प्रभाव से ही महादेव का कंठ नीला पद गया था जिसके कारण भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है | कुछ मान्यताओ के अनुसार इसी दिन शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था इसलिए इसे महा-शिवरात्रि कहा जाता है |
प्रभु आशुतोष के पूजन में अभिषेक व बिल्वपत्र का प्रथम स्थान है। बिल्वपत्र के बारे माना गया है की ये कभी बासी नहीं होते। ये कभी अशुद्ध भी नहीं होते हैं। इन्हें एक बार प्रयोग करने के पश्चात दूसरी बार धोकर प्रयोग में लाने की भी स्कन्द पुराण के इस श्लोक में आज्ञा है-
‘अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरार्यर्पणियानि न नवानि यदि क्वाचित।।’
बिल्वपत्र के वे ही पत्र पूजार्थ उपयोगी हैं जिनके तीन पत्र या उससे अधिक पत्र एकसाथ संलग्न हों। त्रिसंख्या से न्यून पत्ती वाला बिल्वपत्र पूजन योग्य नहीं होता है |
महा-शिवरात्रि के दिन शिवलिंग का जल से अभिषेक कलह को जीवन से दूर कर सुख और शांति देने वाली मानी गई है। इसलिए शास्त्रों में मनोरथ पूर्ति व संकट मुक्ति के लिए अलग-अलग तरह की धारा से शिव का अभिषेक करना शुभ बताया गया है। इन धाराओं को अर्पण करते समय महामृत्युंज मंत्र, गायत्री मंत्र, रुद्र मंत्र, पंचाक्षरी मंत्र, षडाक्षरी मंत्र जरुर बोलना चाहिए।
अलग-अलग धाराओं से शिव अभिषेक का फल –
* जब किसी का मन बेचैन हो, निराशा से भरा हो, परिवार में कलह हो रहा हो, अनचाहे दु:ख और कष्ट मिल रहे हो तब शिव लिंग पर दूध की धारा चढ़ाना सबसे अच्छा उपाय है।
* वंश की वृद्धि के लिए शिवलिंग पर शिव सहस्त्रनाम बोलकर घी की धारा अर्पित करें।
* शिव पर जलधारा से अभिषेक मन की शांति के लिए श्रेष्ठ मानी गई है।
* भौतिक सुखों को पाने के लिए इत्र की धारा से शिवलिंग का अभिषेक करें।
* बीमारियों से छुटकारे के लिए शहद की धारा से शिव पूजा करें।
* गन्ने के रस की धारा से अभिषेक करने पर हर सुख और आनंद मिलता है।
* इसी प्रकार सभी धाराओं से श्रेष्ठ है गंगाजल की धारा। शिव को गंगाधर कहा जाता है। शिव को गंगा की धार बहुत प्रिय है। गंगा जल से शिव अभिषेक करने पर चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है।
भगवान महादेव ही समाज से तिरस्कृत सभी आत्मजनो को एक मात्र पालक है, चाहे वो क्षय से पीड़ित चंद्रमा हो, बिलो में रहने वाले सर्प हो, मनुष्य जनो में तिरस्कृत किन्नर हो या फिर अपनी मनोवृति से पीड़ित राक्षस हो | जो कोई भी महादेव शिव कि शरण में आया है उसको उसकी हैसियत से ज्यादा ही दिया है | क्षय से पीड़ित चंद्रमा को अपने शीश पर, सर्प को अपने गले में और राक्षस और किन्नरो को अपने गणो में स्थान दिया है | अतः महा-शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ शिव की आराधना कर सभी मनुष्य जन उनकी असीम अनुकम्पा प्राप्त कर सकते है
“ पूजन विधि”
प्रातः काल नित्य कर्मो से निवृत होकर स्नानकर शुद्ध धुले वस्त्र पहने व् श्रद्धा भाव से मंदिर या घर पर ही भगवन शिव व् भवानी पार्वती की पूजा क्रमश गंगा जल, बिल्वपत्र, कनेर के पुष्प , रोली , चावल, ताम्बूल, सुपारी, धतूरे के फल , आक के फल , इलाइची, लौंग, दूध, घी, शहद, भांग आदि से करे- भोग लगाये, धुप-दीप जलाये व कपूर की आरती करें।
शिव चालीसा या शिव सहस्रनाम का पाठ करै
रावण निर्मित शिव तांडव स्त्रोत का पाठ अवश्य करे ओम नमः शिवाय, ॐ महेश्वराय नमः ॐ सोमाय नमः ॐ महाकालाय नमः ॐ विश्वेश्वराय नमः आदि मंत्रो का 1-3-10 माला जाप करे। प्रसाद का भोग लगाकर स्वयं व् मित्रो व् परिवार में प्रसाद बाटे।
व्रत के दिन नमक व् अन्न का सेवन न करे केवल फलाहार सायं को करे ।रात्रि में ध्यान व् जागरण करे । यदि नींद सताये तो शिव प्रतिमा के समीप भूमि पर ही स्नान करें। चारपाई पर न सोये।
पुराणों में शिवरात्रि व्रत का बहुत महात्म्य कहा गया है शिव लोक की प्राप्ति होती है। पुत्रदायक विवाहदायक यह व्रत श्रेष्ठ है।
शिव, महेश्वर , रूद्र, पितामह, विष्णु, संसार वेध, सर्वज्ञ और परमात्मा उनके मुख्य आठ नाम है। 23 तत्वों से बाहर प्रकति से बाहर पुरुष और पुरुष से बाहर होने से वह महेश्वर है।प्रकति और पुरुष शिव के वशीभूत है।दुःख तथा दुःख के कारणों को दूर करने के कारण वे रूद्र कहलाते है। जगत के मूर्तिमान पितर होने के कारण विष्णु, मानव के रोग दूर करने के कारण संसार के वैध और संसार के समस्त कार्य जानने के कारण सर्वज्ञ है। अपने से अलग किसी अन्य आत्मा के आभाव के कारण वे परमात्मा है कहा जाता है कि सृष्टि के आदि में महा शिवरात्रि को मध्य रात्रि में शिव का ब्रहा से रूद्र रूप में अवतरण हुआ, इसी दिन प्रलय के समय प्रदोष स्थति में शिव ने ताण्डव नृत्य किया इसीलिए महा शिवरात्रि अथवा काल रात्रि पर्व के रूप मनाने की प्रथा है