ग्रहों का कुण्डली के भावो में फल
सूर्य
पहला भाव:- अगुआ, सरकारी सेवा, प्रबन्धक, राज दरबार उत्तम, साहसी अनुशासनपूर्ण पिता की सेवा करने वाला, डॉक्टर, अपने सम्मान का ध्यान रखने वाला, दृढ़प्रतिज्ञ, शरीर पर घाव लगे, अहंकारी, क्रोधी, घमंडी, जिद्दि, स्त्री स्वास्थ्य बुरा, गृहस्थ में गड़बड़, पित्त व् वायु विकार, सिर पर बाल कम। कठिनाइयों एवं कष्ठों में और आगे बढे। यदि सूर्य लग्न में हो तो शरीर कृश हो, धन कुटुम्ब का सुख साधारण हो, नेत्र विकार, स्त्री क्लेश, शिरो भाग में चिन्ह तथा शिरो रोग होता है। और चतुष्पदो से सुख एवं सत्कार्य में व्यय होता है।
दूसरा भाव:- यदि सूर्य दूसरे भाव मे हो तो दीर्घायु, स्वयं चमके व् ओरो को भी चमकाए, उदार, दानी, जो झगड़े तो मरे। सवारी सुख, धनी, नजर कमजोर। घर में कलह झगड़ा जर, जोरू, जमीन। गले व् मुह के रोग। यदि द्वितीय में हो तो चतुष्पदो से सुख, धन, कुटुम्ब, धातु और सुवर्ण का सुख मध्यम, कटुक रस प्रियता होती है, दांत बड़े होते है नेत्र विकार, कर्ण विकार, सत्कार्य में व्यय, स्त्री सुख सामान्य होता है।
तीसरा भाव:- यदि सूर्य तीसरे भाव मे हो तो धनी। कभी निर्धन न हो। स्वयं उपार्जन कर खाने वाले। माता पिता की आयु लंबी हो। बहादुर, सम्मनित, शायर, भाई बहनों से दुखी परन्तु उनका लाभ करे। तथा तृतीय में सूर्य होतो पराक्रमी, भाग्यवान, यात्रा कारक, व्यवसायी, साहसी, मातृक्लेशकर और सुखी होता है।
चौथा भाव:- यदि सूर्य चोथे भाव मे हो तो बुद्धिमान, अधिकारी, माता पिता को तारने वाला, स्वयं दुखी, सरकारी वाहन मिले। सन्तान की हालत उत्तम हो। गुप्त विद्या में रूचि रखे। अगर चतुर्थ में सूर्य हो तो मातृक्लेश, उदर विकृति, बन्धुविरोध मित्र युक्त, पितृ सुख मध्यम, राज द्वार से लाभ, प्रतिष्ठा और गृह सुख होता है।
पाचवा भाव:- यदि सूर्य पंचम भाव मे हो तो सरकारी अधिकारी, सन्तान पहला लड़का, संतान में देर, औलाद का सुख।क्रोधी अच्छी बुद्धि। यदि शनि तीन तो सन्तान से दुखी। विवाह एकाधिक यदि गुरु निर्बल। पंचम में सूर्य हो तो बुद्धिमान, विद्धान, मंत्रज्ञ, चंचल, साहसी, शत्रुनाशक और लाभवान होता है, परन्तु उदर विकार तथा सन्तान बाधा भी होती है।
छठा भाव:-यदि सूर्य छठे भाव मे हो तो शत्रुओ पर विजय, सरकारी सम्बन्ध बुरा, सरकारी नोकरी बड़ी मुश्किल से मिले। जन्म ननिहाल में जन्म स्थान बढ़िया। न्यायप्रिय, जीवन शक्ति में बिगाड़। तथा षष्ठ में सूर्य हो तो शत्रु की चिन्ता, शत्रु नाश, रोग की अल्पता, चतुष्पद की वृद्धि, चतुष्पद से सुख, अच्छे पद की प्राप्ति, मातुल क्लेश, स्त्री क्लेश और विशेष व्यय राजा द्वारा व् मित्र द्वारा होता है।
सातवाँ भाव:- यदि सूर्य सातवे भाव मे हो तो गृहस्थ जीवन दुखी, स्त्री धनी घर से। पर स्त्री का साथ। औरत दुखी। कठोर स्वभाव, चिन्ता करे, सरकारी नोकरी में गड़बड़, उत्साही, कई कई स्किमें बनाए पर आगे बढ़ने की सार्मथ्य कम। सोने की जगह मिट्टी आए। घर का आंगन गली के साथ। दिमागी उपज बहुत परन्तु क्रियाशील कम। सप्तम भाव् के सूर्य के रहने से स्त्री क्लेश, स्त्री विरोध, कल्प कमित्व, व्यवसायाल्पता, परदेश यात्रा, शरीर में कृशता और चिन्ता होती है।
आठवा भाव:- यदि सूर्य अष्टम भाव मे हो तो क्रोधी, असंतुलन, बेचैन, दुखी, गलत काम करे, आर्थिक स्थती बुरी। सरकारी नोकरी में गड़बड़ी परन्तु दुसरो को चमकाए। तथा अष्टम में सूर्य हो तो रोगभय, पित्त का विकार, चिन्ता, अधिक व्यय, गुप्त रोग, व्रण विकार, कुटुम्ब क्लेश, भोजन क्लेश आदि
नवा भाव:- यदि सूर्य नवे भाव मे हो तो भाग्य 34 वर्ष बाद चमके, ज्योतिषी, डॉक्टर, सरकारी अधिकारी, यदि नरम रहे तो सुख पाए। साहसी नेता, सवारी सुख। खानदान की दीर्घायु का सूचक। नवम में सूर्य के रहने से यात्रा, धर्म में हेतुवादिता, बुद्धि की तीक्ष्णता, विद्या की वृद्धि, साहसाधिक्य, क्लेश, वाहन सुख और भृत्य सुख करता है।
दसवा भाव:- यदि सूर्य दशम भाव मे हो तो राज दरबार से स्मानीत, धनी, सरकारी अधिकारी, प्रबंधक, डॉक्टर, मंत्री, दानी, शनि की हालत पर राज दरबार बुरा एवं औलाद भी बुरी तथा आयु कम। और दशम में सूर्य हो तो प्रताप की वृद्धि, व्यवसाय की वृद्धि, राजसम्मान, प्रतिष्ठा, यश, सम्पति की वृद्धि, क्लेश की वृद्धि, मितव्ययिता और परदेश स्थिति करता है।
ग्यारहवा भाव:-यदि सूर्य ग्यारहवे भाव मे हो तो धन वाला, घमंडी, मित्रो परिजनों को तारे, सरकारी अधिकारी, डॉक्टर, यदि झूठ बोले अथवा शराब सेवन करे तो स्वास्थ्य बुरा, औलाद भी बुरी। एकादश में सूर्य होकर अनेक प्रकार से लाभ, राज सम्बन्ध, साहसाधिक्य, चतुष्पद सुख, पहले सन्तति क्लेश और उदर विकार आरम्भ होता है।
बारहवा भाव:- यदि सूर्य बाहरवे भाव मे हो तो आलसी परन्तु हुनरमंद, राज दरबार में गड़बड़, व्यापारी, गबन,नोकरी में गड़बड़, पराई ममता, जायदाद का मालिक, मनमानी करे व् खराबी हो गृहस्थ सुख, बाई आँख विकार, जीवन शक्ति श्रीण, विदेशो में जाए अथवा डॉक्टर मित्रो को लाभ दे। अच्छे कार्य में व्यय, उदासीनता, मातृ क्लेश, शत्रुबाधा, शत्रुनाश, धर्मोंन्नति, शरीर में कृशता, राजकीय कर्म में बाधा इत्यादि करता है।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा किसी योग्य ज्योतिर्विद से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए