संसार के इंसान की इच्छा होती है कि वह धन धान्य से परिपूर्ण हो संसार के सभी सुख उसकी मुट्ठी में हो। उसका परिवार सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करे। अपनी इस इच्छा की पूर्ति के लिए हर इंसान अपनी सामर्थ्य और योग्यतानुसार परिश्रम भी करता है। परिश्रम करना व्यक्ति के अपने हाथ में है लेकिन परिणाम के बारे में अनभिज्ञ है।
ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से यदि इस पर विचार करे तो हम पाएंगे कि हर लग्न की कुंडली में ग्रह स्थिति जिस तरह की बनती है उसी के अनुसार व्यक्ति की उन्नति का विश्लेषण किया जाता है। व्यक्ति किस माध्यम से सफलता हासिल करके संम्पन होगा इसका पता भी कुण्डली के विश्लेषण से लगाया जा सकता है।
लग्न:- कुण्डली में लग्न का सबसे ज्यादा महत्व होता है। मनुष्य के भाग्य की उन्नति लग्न की सबलता और निर्बलता पर निर्भर करती है।
भाव:- कुण्डली में द्वितीय भाव धन का होता है। चतुर्थ भाव सुख, धन, वाहन, भूमि आदि का सुख प्रदान करता है। पंचम भाव विद्या, राज्य की कृपा और अकस्मात धन प्राप्ति का योग अंकित करता है। सप्तम भाव स्त्री धन, वाणिज्य आदि का है। नवम भाव भाग्य का होता है। दशम भाव कर्म का अर्थात जीवन यापन किस रोजगार के माध्यम से होगा यह संकेत देता है।
गुरु शुक्र:- कुंडली में शुक्र गुरु की स्थिति का काफी महत्व है। शुक्र सांसारिक सुख एवं गुरु से धन संचय को देखा जाता है जैसे द्वितीय भाव पर अगर गुरु की दृष्टि हो और द्वितीय भाव का स्वामी ग्रह शुभ स्थान में हो तो धन का आगमन होगा।
मूल त्रिकोण:- संपन्नता के लिए ग्रहो के मूल त्रिकोण में होने का भी महत्व है।सूर्य के मूल त्रिकोण में होने से व्यक्ति धनी और सुखी होता है। चन्द्रमा के मूल त्रिकोण से व्यक्ति धनी होता है। बुध के मूल त्रिकोण से व्यक्ति विद्वान बनता है। गुरु मूल त्रिकोण में होने पर व्यक्ति को अपने समूह का मुखिया बनाता है।शुक्र के मूल त्रिकोण में होने पर व्यक्ति ज्ञानी, सुखी होता है। शनि के मूल त्रिकोण से व्यक्ति धनी होता है।
ग्रह की युति:- ग्रहो की युति से भी व्यक्ति संपन्न होता है जैसे कन्या राशि में शुक्र मंगल, राहु एवं शनि चारो ग्रहो की युति व्यक्ति को करोड़पति बनाती है।
संपन्नता का आधार:- संपन्नता के कुण्डली में कई माध्यम होते है जैसे विद्या, वाणिज्य, कृषि, सरकारी नोकरी, संगीत कला खेलकूद, अभिनेता नेता बनकर धनी होता है।
विद्या:- कुंडली में नवम भाव में चंद्र, बुध, गुरु की युति व्यक्ति को शिक्षक का कार्य करके संपन्नता दिलाती है नवम भाव में उच्च का बुध अथवा गुरु मित्र राशि में होने पर शिक्षक कार्य से संपन्नता मिलती है।
वाणिज्य:- कुंडली में दूसरे भाव का स्वामी ग्रह एकादश भाव में और एकादश भाव का स्वामी दूसरे भाव में होने से व्यक्ति वाणिज्य के माध्यम से संपन्न होता है।
संगीत कला:- कुंडली में लग्न और भाग्येश का योग, बुध गुरु की युति, चारो केन्द्रों के स्वामियों की युति से व्यक्ति संगीत कला से संपन्न होता है।
अभिनेता:- चतुर्थ भाव व् शनि राहु की युति की इसमें अहम भूमिका होती है। इनके बली होने पर लोकप्रियता प्रदान करते है। पंचम भाव मनोरंजन का भाव भी है। चंद्र मंगल की युति सुंदरता एवं धन प्रदान करती है।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा किसी योग्य ज्योतिर्विद से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए |