दस मुखी रुद्राक्ष
रुद्राक्ष पेड़ के फल की गुठली होती है इस गुठली पर प्राकतिक रूप से कुछ सीधी धारिया होती है। ये धारिया स्पष्ट रूप से दिखायी देती है। इन धारियों की गिनती के आधार पर ही रुद्राक्ष के मुख की गणना होती है।
रुद्राक्ष से होने वाले लाभ
– रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रिय आभूषण है।
-जिस घर में रुद्राक्ष की पूजा की जाती है वहाँ सदा लक्ष्मी का वास रहता है।
– रुद्राक्ष दीर्घायु प्रदान करता है।
– रुद्राक्ष गृहस्थियों के लिये अर्थ और काम का दाता है
– रुद्राक्ष मन को शांति प्रदान करता है।
– रुद्राक्ष की पूजा से सभी दुःखो से छुटकारा होता है
– रुद्राक्ष सभी वणो के पाप का नाश करता है।
– रुद्राक्ष पहनने से ह्रदय रोग बहुत जल्दी सही होते है।
– रुद्राक्ष पहनने से मानसिक व्याधियों से मुक्ति मिलती है।
— रुद्राक्ष धारण करने से दुष्ट ग्रहो की अशुभता शरीर मे होने वाला विषेला संक्रामण ओर कुद्रष्टि दोष, राक्षसी वृति दोष शांत रहते है
– रुद्राक्ष तेज तथा ओज मे अपूर्व वृद्धि करता है
दस मुखी रुद्राक्ष
दस मुखी रुद्राक्ष में दस धारिया होती है।दस मुखी रुद्राक्ष भगवान विष्णु स्वरूप है, इसे दशावतार मत्स्य, कृष्ण, राम,वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, बुद्ध के स्वरूप का प्रतीक माना जाता है, इसे पहनने से दसो देवता अति प्रसन्न होकर धारक को अनेक प्रकार की दिव्य शक्तिया प्रदान करते हैं, इसको धारण करने से दसो दिशाएं तथा दिक्पाल कुबेर, इन्द्र, अग्नि यम, वरुण, वायु,ईशान, अनन्त तथा ब्रह्रा सन्तुष्ट रहते है। दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने से दशो दिशाओं में यश फैलता है तथा दसो इंद्रियो द्वारा किये गये समस्त पापो का अन्त हो जाता है।दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने वालो पर किसी ग्रह का आधिपत्य नहीं रहता है।दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने वालो को लोक सम्मान मिलता है राजसी कार्यो में सफलता मिलती है। उसे कीर्ति विभूति और धन की प्राप्ति होती हैं तथा धारणकर्ता की सभी लौकिक तथा पारलौकिक कामनाये पूर्ण होती है। भूत, पिशाच, बेताल, राक्षस आदि का भय समाप्त हो जाता है।जिस प्रकार एक मुखी रुद्राक्ष सम्पूर्ण शिव स्वरूप है उसी प्रकार दस मुखी रुद्राक्ष सम्पूर्ण विष्णु स्वरूप है। इसी कारण यह नेताओ, समाज सेवियो तथा कलाकारों के लिये उत्तम माना जाता है। इसको पहनने वाला दुश्मन के मारे मरता नहीं है।
रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व शिवजी के विग्रह से बहते जल से या पंचामृत से या गंगाजल से धोकर त्र्यंम्बकमंत्र या शिवपंचाक्षर मंत्र ओ` नमः शिवाय से प्राणप्रतिष्ठा करनी चाहिए
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए |