उभयचरीक योगः-

यदि किसी कुण्डली में सूर्य से दूसरे तथा बाहरवें दोनों भावो में ग्रह विद्यमान हो, तो उभयचरिक योग बनता है। फल:- यदि सूर्य से द्वितीय भाव तथा द्वादश भाव दोनों में शुभग्रह हो तो शुभ उभयचरिक योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सहनशील होता है। तथा प्रत्येक प्रकार की परिस्थिति को सहन करने में सक्षम…

वेशि योगः- यदि चन्द्रमा के अतिरिक्त कोई भी ग्रह या कई ग्रह सूर्य से दूसरे भाव में स्थित हो , तो वेशि योग होता है। फल:- यदि सूर्य से दूसरे भाव में शुभग्रह स्थित हो , तो शुभ वेशि योग तथा पापग्रह हो तो अशुभ वेशि योग होता है। शुभ वेशि योग में जन्म लेने…

वासी योग:

– यदि चन्द्रमा के अतिरिक्त कोई भी ग्रह या अनेक ग्रह सूर्य से बाहरवें स्थान में विद्यमान हो, तो वासी योग होता है फल:- वासी योग में जन्म लेने वाला जातक अपने कार्य में दक्ष होता है। यदि सूर्य से बाहरवें भाव में शुभग्रह हो तो, जातक प्रसन्न, निपुण, विद्यावान, गुणी और चतुर होता है।…

अमला योग:

अमला योग:- चन्द्रमा जिस लग्न पर बैठा हो, यदि उससे दसवे स्थान पर कोई शुभ ग्रह बैठा हो तो अमला योग होता है। यदि लग्न से दसवे स्थान पर शुभग्रह हो तो अमला योग माना जाता है। फल:- जिस जातक की कुण्डली में अमला योग होता है, वह प्रसिद्ध, गुणवान और ख्याति प्राप्त करने वाला…

गजकेशरी योग:-

गजकेशरी योग:- ” गजकेसरी संजातस्तेजस्वी धनधान्यवान। मेधावी गुण सम्पन्नों राजप्रिय करो भवते।। चन्दमा से केन्द्र में (1,4,7, 10 वे भाव में) बृहस्पति स्थित हो तो गजकेशरी योग होता है। यदि शुक्र या बुध नीचराशि में स्थित न होकर या अस्त न होकर चन्द्रमा को सम्पूर्ण दृष्टि से देखते हो तो प्रबल गजकेशरी योग होता है।…

उंगलिया

उंगलियों से भी व्यक्ति के स्वभाव के बारे में बताया जा सकता है जैसे-: लम्बी हो तो बारीकी, छोटी छोटी तफसील की तरफ ज्यादा ध्यान देना छोटी छोटी बातों का ज्यादा चिन्ता करना बताती है। छोटी उंगलियों वाले ज्यादा चिन्ता नहीं करते मस्त मोला होते है और जैसा है ठीक है ज्यादा सोच विचार नहीं…

यंत्र

यंत्र का महत्व मान कर उससे लाभ प्राप्त करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है प्रत्येक अविष्कार के मूल में उसकी आवश्यकता छिपी होती है। हम देखते है सदियों से दीपावली के दिन दुकान के दरवाजे पर यंत्र लिखवाने की प्रथा चली आ रही है। इस तरह से यंत्र साधना एक लंबे…

शंख शंख से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है। प्राचीन काल से धार्मिक आध्यात्मिक, पूजा पाठ में शंख की महत्वता रही है। अपने गुणों और प्रभावशीलता के कारण हिन्दू पूजा पद्धति में शंख एक अत्यंत शुद्ध पूज्य वस्तु रही है। शंख का अनेक प्राचीन युगों में भी आध्यात्मिक तथा धार्मिक स्वरूप के बारे में काफी वर्णन है।…

स्फटिक

स्फटिक स्फटिक को हीरे का उपरत्न माना गया है, इसलिये इसे शुक्र रत्न भी कहते है। स्फटिक को कचमणि, बिल्लोर, बर्फ का पत्थर तथा अंग्रेजी में रॉक क्रिस्टिल कहा जाता है। यह एक पारदर्शी रत्न है, इसे स्फटिक मणि भी कहा जाता है। स्फटिक पहाड़ो पर बर्फ के नीचे छोटे छोटे टुकड़ों के रूप में…

रुद्राक्ष का विविध रोगों में प्रयोग-: 1 आयुर्वेदिक दृष्टि से रुद्राक्ष को महौषधि माना गया है इसके विषय में कहा गया है कि यह उष्ण ओर अम्ल होता है इसी कारण यह वात और कफ तथा अन्य रोगों का शमन करता है अम्ल और विटामिन सी युक्त्त होने के कारण यह रक्त रोधक तथा रक्त…