स्फटिक
स्फटिक को हीरे का उपरत्न माना गया है, इसलिये इसे शुक्र रत्न भी कहते है। स्फटिक को कचमणि, बिल्लोर, बर्फ का पत्थर तथा अंग्रेजी में रॉक क्रिस्टिल कहा जाता है। यह एक पारदर्शी रत्न है, इसे स्फटिक मणि भी कहा जाता है। स्फटिक पहाड़ो पर बर्फ के नीचे छोटे छोटे टुकड़ों के रूप में पाया जाता है, यह बर्फ के समान पारदर्शी पन लिये सफेद रंग का होता है।
स्फटिक बेशक उपरत्नों की सूची में आता है, परन्तु इसका प्रभाव रत्नों से भी अधिक प्रभावपूर्ण होता है, इसलिये इसका नाम स्फटिक मणि पड़ा है। यह कई रत्नों से भी महत्वपूर्ण है।
स्फटिक पत्थर को काट तराश कर विभिन्न प्रकार की माला शिवलिंग, श्रीयंत्र, भगवान की मूर्तियां तथा लॉकेट इत्यादि बनाये जाते है। यह कटिंग और पॉलिश के पश्चात बहुत ही आकर्षक हो जाता है।
चूंकि स्फटिक मणि है और इसमें भगवान का वास है अतः इसके बनाये गये धार्मिक खंडों की पूजा अर्जना का विशेष महात्म्य होता है। स्फटिक शिवलिंग तथा मूर्तियों को विराजमान करने के लिये सामान्यतः प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं रहती है।
स्फटिक की माला बहुत ही अधिक शुद्ध तथा आध्यात्मिक व् शितवयी जानी जाती है । स्फटिक की माला पर किसी भी मंत्र का जाप करने से वह मंत्र अति शीघ्र सिद्ध हो जाता है तथा यह असाधारण रूप से विशेष फलदायिनी तथा सर्वोत्तम मानी गयी है इस माला पर लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा तथा गायत्री माता के मंत्र का जाप करने से तुरन्त सिद्धि की प्राप्ति होती है। यह माला सदैव लाभ प्रदान करती है।
चूंकि स्फटिक बर्फीले पहाड़ो पर पाया जाता है। इसलिए इसकी तासीर ठण्डी होती है। इसकी माला धारण करने से यह शरीर की गर्मी को ख़त्म करके अनेक प्रकार के शारारिक तथा मानसिक कष्टो को समाप्त करती है । यह माला गर्म स्वभाव वाले या बात बात पर गुस्सा करने वाले व्यक्तियो के क्रोध को शांत कर के उन्हें असीम सुख का अनुभव कराती है यह खून की गर्मी से होने वाले समस्त रोगों को समाप्त करती है । जिन व्यक्तियों के शरीर में लाल लाल चकते तथा दाने हो जाते है वह इसे धारण करके लाभ उठा सकते है। इस माला को कोई भी धारण कर सकता है।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए