बुध
यह मिथुन एवं कन्या राशि का स्वामी है। साधारण अथवा स्वभाविक कुण्डली में यह तीसरे भाव का स्वामी है जो की कथन, विचारो को प्रगट करने का भाव है। इस प्रकार यह छठे भाव का भी मालिक है जो की स्वास्थ्य तथा सर्विस का भाव है। यह हाथ, बाहों, कन्धे, फेफड़े व पेट का कारक है। इसका रंग हरा है। यह राशि चक्र को घूमने के लिए औसतन एक वर्ष लगता है। यह 28 अंश सूर्य के निकट ही साधारणतया रहता है। सूर्य के गिर्द चक्र को यह लगभग 88 दिन लेता है। आम तौर पर जब वक्रीय कुण्डली में होता है तो मन की क्रिया सुस्त होती है और कई बार जातक उल्टी हरकते करता है। शीघ्र एवं यूं ही क्रोध में आ जाना तथा स्वभाव चिड़चिड़ा बन जाता है। जातक लापरवाही अथवा बेध्यान में दुर्घटना का शिकार हो जाता है।
यह चन्द्र की तरह बहुत महत्वपूर्ण ग्रह है। यह मुख्यतः मन पर प्रभाव डालता है। यह अपने बल अनुसार मानसिक, बौद्धिक उन्नति को दर्शाता है। जब यह चन्द्र के साथ त्रिकोण दृष्टि करता है तो अच्छी बुद्धि देता है। चतुराई, धार्मिक, रूचि, बुद्धि-विवेक, शास्त्रीय विषयो में रूचि मधुर वाणी का कारक है। यह शुभ ग्रह है। बुरे ग्रहों के साथ होने से यह भी बुरा हो जाता है। जिन ग्रहों के साथ यह होता है उनके गुणानुसार ही फल देता है। यदि यह शुभ फलदाता हो तो चिकित्सा, शास्त्र, ज्ञान, गणित विद्या, लेखा, लेखनकला, शिल्प कला, वकालत, व्यापार एवं बड़ी अच्छी बुद्धि प्रदान करता है। प्रसन्नचित, उत्तम वक्ता, नई नई योजनाएं बनाने वाला तथा अच्छा सलाहकार बनाता है। ऐसा जातक विद्वान होता है। हस्तकला, कौशल एवं वेदशास्त्र का ज्ञान होता है। यदि बुध अशुभ तो सिर का दुखना, ज़बान थथलाना, यूं ही बाते करते जाना, दिल्लगी करना, झूठ बोलना, भेदों को गुप्त रखना, उल्टे काम करना, गणित में फेल होते जाना, व्यापार में घाटा आदि प्रभाव देता है। इसका फल विचार करते समय यह ध्यान रखना पड़ेगा की यह किस राशि में है एवं इस पर किस ग्रह की दृष्टि है।
प्रभाव:- इसका मुख्य प्रभाव मन पर होता है। मानसिक अवस्था, वाहन, पत्र व्यवहार, समाचार, विद्या, बुद्धि, चतुराई, व्यापार, साहित्य, विवेक, नोनिहाल, वाणी, युवराज, लेखा व् लेखन कार्य, शिक्षा, गणित, परिवर्तन, शिल्पकला, संगीत, तंतु प्रणाली, नसे, हाथ, बोलना, दिमाग, हुनर, जुबान, नसीहत करना, नसीहत करने वाले, दोस्ती आदि पर होता है।
क्या क्या विचारना:- विद्या, वाणी, मामा, मित्र, नाक, घ्राणशक्ति सम्बन्धी विचार भी इससे ही प्रभावक्षेत्र में आते है।
बुध 4 एवं 10 भावो का कारक भी है। इन भावों का फल कथन करते समय बुध को ध्यान में रखना अत्यन्त आवश्यक है। यह मामा, बहन, तोता, फल, हरे पन्ने, पेड़, रिक्त आदि तथा मित्र का भी कारक है।
रोग:- जब बुध अशुभ होता है तो तंतु प्रणाली रोग, मस्तक के रोग, मिरगी, चर्म रोग, खून की कमी उत्पन्न करता है। हाथ, कन्धे, हर्निया, मस्तिष्क, चमड़ी, कदकाठी, शक्ति, हाजमा भी इसके घेरे में आते है।
बुरे बुध की निशानी:- मित्र से झगड़ा, जबान थथलाने लगना, तोता गुम हो जाना, नसे सूज जाना, लकवा हो जाना, आदि हो तो समझ लेना चाहिए की बुध का बुरा प्रभाव हो गया है।
मकान की हालत:- देखना होगा की कुण्डली में बुध कहाँ बैठा है। जिस भाव में बुध बैठा हो उस दिशा में मकान के अन्दर खाली स्थान अथवा आंगन होगा। मकान के इर्द-गिर्द उस ओर फूल, हरे पत्तों वाले पेड़ होंगे।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा किसी योग्य ज्योतिर्विद से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए |