शनि ग्रह के जीवन पर प्रभाव
शनि
शनि मकर एवं कुंभ राशि का मालिक है तथा स्वभाविक कुण्डली में यह 10 वे और 11 वे भाव का भी स्वामी है। दसवा भाव पिता रोजगार, कारोबार, परिश्रम, मान सम्मान, पर आदि से सम्बंधित है। शनि सब पर प्रभाव डालता है तथा कारक भी है। शनि को सूर्य के चारो तरफ चक्कर लगाने ने 29 वर्ष लगते है तथा राशि चक्र भी यह लगभग 29 वर्ष 40 दिन में यह पूरा कर लेता है। हर वर्ष यह लगभग 3 महीने वक्रीय रहता है। शास्त्रो में इसे सूर्य पुत्र माना है। कहा जाता है कि शनि को घर से निष्काषित कर दिया गया। वनवास में इसने अपने धैर्य, परिश्रम, लगन एवं हिम्मत से धरती पर स्वर्ग ला दिया। बड़े बड़े प्रॉजेक्ट निर्मित किए गए एवं सब तरफ चहल पहल कर दी। जो अथक परिश्रम करता है शनि उसकी सहायता करता है।
गोचर में भी जब शनि वक्रीय होता है तो महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। श्रमिको में बेचैनी आम देखी गई है। जन्म कुण्डली में गोचर का वक्रीय शनि विचरण करता है तो नोकरी में परिवर्तन सम्बन्धी घटनाएं घटती है। नोकरी सम्बन्धी उतार चढ़ाव यथा वृद्धि, उन्नति, पद अवनित होना, साधारण कार्य कलापो में परिवर्तन, साधारण तरीको में और यहा तक नोकरी में परिवर्तन भी करवाता है। शनि वक्रीय होने के समय लगी नोकरी अस्थाई ही होती है। शनि वक्रीय होने के समय स्वयं नोकरी बदलना बड़ा ही हानिकारक सिद्ध होता है।उच्चपद प्राप्ति हेतु तभी आवेदन करना चाहिए जब शनि सीधी चाल पर हो अथवा सीधा खड़ा वक्रीय हो। यदि शनि वक्रीय गोचर में विचरण कर तो पुरुष परिवर्तन होते है तथा माँ बाप,पति, व्यवसाय, आदमी, बड़े भाई अथवा भाई पर प्रभाव पड़ता है।
शनि मात्र सांसारिक कार्य कलापो, नोकरी, सेवा आदि का ही द्योतक नहीं अपितु जो कार्य इस जीवन में आने हेतु परमात्मा ने सौपा होता है उसका भी सूचक है। इसलिए शनि तुला राशि में उच्च का है तुला राशि का स्वामी शुक्र सांसारिक कार्यो का मुखिया भी है। तथा इश्क मिज़ाजी इश्क हकीकी का भी। सच्च और सही जीवन दोनों में संतुलन रखने में ही है। जो इस सन्तुलन को समझ गया वह पार हो जाता है।
शनि बलवान हो तो कठोर, कुष्ट, कुछ डरपोक, दृढ़, कम बोलने वाला, हिसाब किताब से खर्च करने वाला , तथा अच्छे स्वभाव वाला होता है। शनि निर्बल हो तो चिन्ता, कष्ट, क्रोध, दुष्ट स्वभाव होता है। शनि से भय, मृत्यु , उदासीनता के बारे में भी विचार होता है। शनि जिस स्थान को देखता है, हानि करता है तथा घटना घटने में विलंब, विघ्न डाल देता है।
प्रभाव क्या क्या विचारना:- शनि से आयु,जीवन, मृत्यु, विपत्ति, चालाकी, बीमारी, चोरी,डाक, लूट, दुःख, संपति, टेंडर भरने, पशुओं के व्यापार सम्बन्धी विचार भी होता है। इसका प्रभाव संस्था, समस्या, कृषि भूमि, निर्माण कार्य, श्रम , घुटने से पिण्डली तक भी होता है।
यह धीरे धीरे चलने वाला, धैर्य के साथ काम करने वाला, परिश्रमी तो है परन्तु यह अपने भेद गुहा रखने वाला और दूसरों का तमाशा देखने वाला भी है। यह मनुष्य को धीरे धीरे मरता है जिसके विपरीत मंगल एकदम आक्रमण कर के मार डालता है। यह कला अनपढ़, निम्न श्रेणी का कारक भी है। इसके प्रभावाधीन चालाकी की कमाई एवं प्राप्ति तो बहुत होती है परंतु इसके निर्बल अथवा प्रभावोपरान्त यह कमाई व्यथ जाती है। यह 6,8,10,12, भावो का कारक है। जब इन भावों का फल विचार किया जाता है तो शनि को विचाराधीन रख कर स्पष्ट फल ज्ञात होता है। विस्तार को सिकोड़ना, प्रतिबन्ध लगाना तथा काम में विलम्ब विघ्न डालना इसका स्वभाव है।
रोग:-इसका प्रभाव टांगो बांहों, बाल, बोलचाल पर पड़ता है। यह शरीर को नीचा दिखाने वाले शक्ति का कारक है। वायु के रोग, कफ रोग, पेट दर्द,लकवा,बदहजमी, बवासीर, शरीर का कमजोर होते जाना, कद वाणी, आँखों की दृष्टि कमजोर, घुटने से पिण्डली तक विकार, नाड़ी विकार, दांत दर्द आदि रोग उत्पन करता है।
निशानी:- मकान गिर जाए, आग लगे, कपड़े अचानक जल जाए, भेस का मर जाना बुरे शनि की निशानी है।
मकान:- जिस भाव में शनि बैठा हो उस दिशा की ओर पैतृक घर शनि से सम्बंधित जानदार एवं बेजान वस्तुएं होगी जो पहले बताई जा चुकी है।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा किसी योग्य ज्योतिर्विद से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए