
शुभग्रह कृतोरिष्ट भंग योग:-
बृहस्पति, शुक्र और बुध इनमे से एक भी ग्रह बलवान होकर केन्द्र में हो तथा उसका पापग्रहों से सम्बन्ध न हो , तो उपयुक्त योग बनता है।
फल- उत्पन्न अनिष्ट के शांत होने पर शुभग्रह जातक को अपने से सम्बन्धित शुभफल प्रदान करते है।
नोटः- शुभग्रह छह स्थितियों में अनिष्ट करते है।
=शुभग्रह कुण्डली में 6, 8 या 12 वे भाव में हो।
=सूर्य के साथ बैठे हो।
=सूर्य से सप्तम स्थान पर हो।
=शत्रुक्षेत्री या शत्रुग्रह की राशि में हो।
=शत्रुग्रहों के साथ बैठे हो।
=शत्रुग्रहों अथवा पापग्रहों से दृष्ट हो।
इन छहो स्थितियों में से कोई भी एक या एक से अधिक स्थिति होने पर शुभग्रह भी अनिष्ट करते है तथा जातक को अशुभ फल या क्षीण फल प्रदान करते हैं, परन्तु यदि गुरु, शुक्र या बुध इन तीनो में से कोई भी एक या दो अथवा तीनो ग्रह बलवान होकर (10 से 25 अंशो में होकर केन्द्र में स्थित हो, तो शुभग्रहों से उत्पन्न समस्त दुष्प्रभाव शान्त हो जाते है तथा सभी ग्रह अत्यधिक शुभफलप्रदाता बन जाते है।
केन्द्र स्थानों (1,7,10)में सर्वाधिक बलवान केन्द्र स्थान 10 वा भाव है, उससे कम बली 7 वा भाव तथा उससे भी कम बली चौथा भाव माना जाता है। लग्न को 10 वे भाव के बराबर ही बली माना जाता है।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए