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देवगुरु ब्रहस्पति का वृश्चिक राशि में गोचर :-

देवगुरु ब्रहस्पति को 9 ग्रहो मे से सबसे बड़ा ग्रह माना जाता है यह साल मे एक बार एक राशि से दूसरी राशि मे गोचर करता है जिसके हर राशि मे कुछ शुभ अशुभ फल होते है आइये देखते है की देवगुरु आपकी राशि मे क्या शुभ अशुभ फल परिणाम ले कर आए है
बृहस्पति जीवन की रक्षा करने वाला और सांसारिक सुखों को बढाने वाला ग्रह है। कुण्डली में बृहस्पति बलवान व् शुभ स्थानों में हो तो जीवन में उन्नति का मार्ग आसान हो जाता है। इसके बलवान होने पर कम परिश्रम से अनुकूल सफलता प्राप्त होती है ।यह विद्या, ज्ञान, सुख स्मृद्धि, सम्पति, मान सम्मान, प्रतिष्ठा व् सज्जनता का भी प्रतिनिधि है। यह प्रसन्न हो तो व्यक्ति को समर्थ, अधिकारयुक्त और प्रशसनीय बनाता है। तन, मन व् वचन की शुद्धि सदाशयता, कर्मो की पवित्रता, किसी के काम आने का गुण, दुसरो के दुःख में दुखी होने की आदरणीय भावनाएं आदि बाते बृहस्पति के अधीन है जीवनदायक होने से जीवप्रदाता भी है।
= ओं अंगिरोजाताय विदमहे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात।
मेष:- आठवे मृत्यु एवं पुरातत्व स्थान में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर बैठे हुए गुरु के प्रभाव से उसके व्ययेश होने के कारण जातक की भाग्योन्नति में बहुत बाधाए आती हैं तथा अपयश प्राप्त होता है, परन्तु उसे आयु एवं पुरातत्व का लाभ होता है। इस स्थान से गुरु की पांचवी दृष्टि व्ययभाव में पड़ती है, अतः खर्च अधिक होगा एवं बाहरी स्थानों से विशेष सम्बन्ध बना रहेगा। सातवी दृष्टि धन एवं कुटुंब के द्वितीय स्थान में पड़ने से धन एवं कुटुंब की सामान्य वृद्धि होगी तथा नवी उच्चदृष्टि भूमि तथा मकान का सुख भी प्राप्त होगा।
वृष:- सातवे केन्द्र स्त्री तथा व्यवसाय के भवन में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक को स्त्री तथा व्यवसाय के क्षेत्र में कुछ कठिनाइयां उपस्थित होती है, परन्तु आयु एवं पुरातत्व का लाभ होता है। इस स्थान से गुरु पाँचवी दृष्टि से स्वराशि में एकदशभाव को देखता है, अतः आमदनी का अच्छा योग बना रहता है सातवी शत्रु दृष्टि से प्रथमभाव को देखता है, अतः शरीर में थकान और दुर्बलता बनी रहती है तथा नवी उच्चदृष्टि से तृतीयभाव को देखता है, अतः भाई बहन के सुख , धैर्य तथा पराक्रम की वृद्धि होती है ऐसा व्यक्ति स्वार्थी, धन संचयी तथा ऊपर से देखने में सज्जन होता है।
मिथुन:- छठे शत्रु तथा रोग भवन में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक को शत्रु पक्ष में विजय प्राप्त होती है। साथ ही स्त्रिपक्ष में कुछ मतभेदों के साथ सफलता मिलती है। यहाँ से गुरु पाँचवी दृष्टि से अपनी मीन राशि में दशमभाव को देखता है, अतः उसे राज्य द्वारा सम्मान एवं उन्नति के अवसर मिलते है। सातवी शत्रुदृष्टि से द्वादशभाव् को देखने के कारण खर्च खूब रहता है तथा बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से लाभ मिलता है। नवी उच्चदृष्टि से द्वितीयभाव को देखने के कारण परिश्रम के द्वारा धन की वृद्धि होती है तथा कुटुंब से सहयोग प्राप्त होता है ऐसा जातक उन्नतिशील होता है।
कर्क:- पांचवे त्रिकोण , विद्या बुद्धि एवं संतान के भवन में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक को विद्या बुद्धि तथा संतान के पक्ष में विशेष सफलता मिलती है तथा शत्रु पक्ष पर भी प्रभाव प्राप्त होता है। यहाँ से गुरु पाँचवी दृष्टि से स्वराशि में नवमभाव को देखता है, अतः बुद्धि और सन्तान के सहयोग से भाग्य तथा धर्म की वृद्धि होती है। सातवीं शत्रुदृष्टि से एकादशभाव को देखने के कारण लाभ के क्षेत्र में कुछ असंतोष के साथ असफलता मिलती है तथा नवी मित्रदृष्टि से प्रथमभाव को देखने के कारण शारीरिक सौन्दर्य आत्मबल एवं सुयश प्राप्त होता है गुरु के षष्ठेश होने के कारण जातक को प्रत्येक क्षेत्र में कुछ परेशानियां तो अनुभव होती है परंतु सफलता भी अवश्य मिलती है।
सिंह:- चौथे केन्द्र, माता, भूमि, तथा सुख के स्थान में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक को माता, भूमि तथा मकान के सुख में कमी प्राप्त होती है, परन्तु संतान एवं विद्या के पक्ष से लाभ होता है। यहाँ से गुरु के पाँचवी दृष्टि से स्वराशि में अष्टमभाव को देखने से आयु एवं पुरातत्व का लाभ होता है। सातवीं शत्रुदृष्टि से दशमभाव को देखने से पिता से वैमनस्य रहता है तथा राज्य के क्षेत्र से भी पूर्ण लाभ नहीं होता एवं नवीं उच्चदृष्टि से द्वादशभाव को देखने के कारण खर्च अधिक होता है, परन्तु बाहरी स्थानों के सम्बंध से लाभ एवं सुख की प्राप्ति होती है।
कन्या:- तीसरे भाई एवं पराक्रम के स्थान में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक को भाई बहन का सुख मिलता है तथा पराक्रम में वृद्धि होती है। साथ ही माता, भूमि, एवं मकान आदि का सुख भी प्राप्त होता है। यहाँ से गुरु पाँचवी दृष्टि से स्वराशि में सप्तमभाव को देखता है, अतः स्त्री तथा व्यवसाय के पक्ष में कुछ सफलता मिलती है। स्त्री सुन्दर होती है तथा घरेलू सुख में वृद्धि बनी रहती है। सातवीं शत्रुदृष्टि से नवमभाव को देखने के कारण भाग्य तथा धर्म के क्षेत्र में कुछ रुकावटो के साथ उन्नति होती रहती है।नवी उच्च तथा मित्रदृष्टि से एकादशभाव को देखने से आमदनी के पक्ष में विशेष सफलता प्राप्त होती है। संक्षेप में ऐसा जातक धनी तथा सुखी होता है।
तुला:- दूसरे धन कुटुंब के भवन में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक अपने परुषार्थ द्वारा धन की वृद्धि करता है, परन्तु भाई बहन के सुख में कुछ कमी आती है। यहाँ से गुरु पाँचवी दृष्टि से अपनी ही मीन राशि में षष्ठभाव को देखता है अतः जातक अपने धन तथा शक्ति के बल पर शत्रु पक्ष में प्रभाव प्राप्त करता है। सातवीं शत्रुदृष्टि से अष्टमभाव को देखने के कारण पुरातत्व की सामान्य शक्ति प्राप्त होती है तथा आयु की वृद्धि होती है नवीं उच्च एवं मित्रदृष्टि से दशमभाव को देखने से राज्य द्वारा सम्मान, पिता द्वारा सुख तथा व्यवसाय में सफलता एवं प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।
वृश्चिक:- पहले केंद्र तथा शरीर स्थान में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक शारीरिक शक्ति प्रभाव एवं प्रतिष्ठा को प्राप्त करता है। यहाँ से गुरु पाँचवी दृष्टि से स्वराशि में पंचमभाव को देखता है, अतः जातक को विद्या, बुद्धि एवं संतान के पक्ष में भी श्रेष्ठ सफलता मिलती है। सातवीं शत्रुदृष्टि से सप्तमभाव को देखने के कारण स्त्री से कुछ मतभेद रहता है तथा व्यावसायिक क्षेत्र में सामान्य कठिनाइयां आती है, परन्तु बाद में स्त्री तथा रोजगार दोनों ही पक्षो से शक्ति मिलती है। नवीं उच्चदृष्टि से नवमभाव को देखने से भाग्य की विशेष उन्नति होती है। तथा जातक धर्म का पालन भी करता है। संक्षेप में, व्यक्ति भाग्यवान तथा सुखी होगा
धनु:- बाहरवें व्यय भवन में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक का खर्च अधिक रहता है, परन्तु बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से सुख प्राप्त होता है। उसे भ्रमण करना पड़ता है तथा शरीर में कुछ कमजोरी भी बनी रहती है। यहाँ के गुरु पाँचवी दृष्टि से अपनी ही राशि में चतुर्थभाव को देखता है। अतः जातक को माता, भूमि एवं मकान का सुख प्राप्त होता है। सातवीं शत्रुदृष्टि से षष्ठभाव को देखने से शत्रु पक्ष में अपनी बुद्धिमानी से प्रभाव स्थापित करता है तथा झगड़ो में शांतिपर्वक काम निकालकर सफलता पाता है । नवीं उच्चदृष्टि से मित्र चंद्र की राशि में अष्टमभाव को देखने के कारण आयु की वृद्धि होती है। और उसे पुरातत्व का लाभ मिलता है। ऐसे व्यक्ति का दैनिक जीवन शानदारी का रहता है।
मकर:- ग्याहरवें लाभ भवन में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक की आमदनी खूब रहती है, परन्तु गुरु के व्ययेश होने के कारण उसमे कुछ कठिनाइयां भी आती है। बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से लाभ होने के कारण खर्च आराम तथा ठाट से चलता है। यहाँ से गुरु अपनी पाँचवी दृष्टि से तृतीयभाव को अपनी ही राशि में देखता है अतः भाई बहन एवं पराक्रम की शक्ति में वृद्धि होती है। सातवीं दृष्टि से शुक्र की वृषभ राशि में पंचमभाव को देखने से सन्तान पक्ष से कुछ असंतोष रहता है परंतु विद्या बुद्धि एवं वाणी की शक्ति प्राप्त होती है। नवीं उच्चदृष्टि से मित्र चन्द्रमा की राशि में सप्तमभाव को देखने से स्त्री तथा व्यवसाय के क्षेत्र में विशेष सफलता मिलती है।
कुंभ:-दसवें केंद्र राज्य, पिता एवं व्यवसाय के भवन में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक को पिता द्वारा शक्ति राज्य द्वारा सम्मान तथा व्यवसाय द्वारा धन एवं सफलता का यथेष्ट लाभ होता है। वह बड़ी शान से रहता है तथा भाग्यवान माना जाता है यहाँ से गुरु पाँचवी दृष्टि से अपनी ही राशि में द्वितीयभाव भाव को देखता है अतः धन एवं कुटुंब की वृद्धि होती है सातवीं सामान्य शत्रुदृष्टि से चतुर्थभाव को देखने से माता का सुख एवं भूमि और भवन का यथेष्ट लाभ होता है नवीं उच्चदृष्टि से चन्द्रमा की राशि से षष्ठभाव को देखने के कारण शत्रु पक्ष पर बड़ा भारी प्रभाव रहता है तथा झगड़े , झंझटें के मार्ग से सफलता एवं लाभ की प्राप्ति होती है
मीन:- नवें त्रिकोण , भाग्य एवं धर्म के भवन में अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि पर स्थित गुरु के प्रभाव से जातक के भाग्य तथा धर्म की विशेष उन्नति होती है। वह राज्य पिता एवं व्यवसाय के पक्ष में भी अत्यधिक सफलता, यश सम्मान, लाभ तथा सुख प्राप्त करता है। यहां से गुरु पाँचवी दृष्टि से अपनी ही राशि में प्रथमभाव को देखता है, अतः जातक के शारीरिक सौन्दर्य, प्रभाव, यश तथा स्वाभिमान में वृद्धि होती है। सातवीं दृष्टि से शुक्र की राशि में तृतीयभाव को देखने से भाई-बहनों का सुख मिलता है तथा पराक्रम की वृद्धि होती है नवीं उच्चदृष्टि से मित्र की राशि में पंचमभाव को देखने के कारण विद्या बुद्धि की श्रेष्ठ शक्ति प्राप्त होती है तथा संतान पक्ष से भी सुख मिलता है ऐसा व्यक्ति कलात्मक रूचि का, प्रभावशाली तथा वाणी का धनी होता है।
ब्रहस्पति के उपाय-
= पेड़ पोधों की देखभाल करना पीपल मे पानी देना या उसके मूल मे दिया
जलाना शुभ हे!
= हल्दी गाठ केसर पीला रत्न चन्दन घर मे रखे!
=केसर लगी मिठाई केसरी हलुआ कभी कभी बांटकर खाये!
किसी सुपात्र को पुस्तक या पठन सामग्री की सहायता करे!
=केसर लगी मिठाई केसरी हलुआ कभी कभी बांटकर खाये!
घर से थोड़ी दूर स्तिथ पीपल मे जल दे शाम को जड़ मे दीपक जलाए !
=पीपल को नमस्कार करते समय ये मंत्र पढ़ना चाइए !
मूलतों ब्रमरुपाय मध्यतों विष्णुरूपिणे!
अंतत: शिवरुपाय वृक्षराजाय ते नमः!
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए
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