ग्रहों का कुण्डली के भावो में फल
गुरु
पहला भाव:- यदि गुरु पहले भाव में हो तो अच्छी विद्या प्राप्त करे, डिग्रिया ले, दीर्घायु, विद्वान, ज्योतिष, लेखक, अच्छा वक़्ता, प्रचारक, मधुरभाषी, अधिकारी, सम्मानित, सोलह वर्ष से उत्तम फल दे। माता, पत्नी झगड़ा। सांसारिक कामो में उन्नति करे। सुखी, बुद्धिमान, विनीत, धर्मात्मा, धनवान, कामी, पुत्रवान, राजसुख और विद्वान होता है।
दूसरा भाव:- यदि गुरु दूसरे भाव में हो तो उदार, दानी, गृहस्थ सुख कम, अधिकारी, बैंक अधिकारी, कानून विभाग, मिट्टी के कामो से सोना प्राप्त हो। जायदाद अच्छी, पिता से लाभ। ऊपर से भोला, भीतर से इश्की पट्टा। दीर्घायु, मधुरभाषी। ग्रह युक्त्त या धन युक्त्त, मीन का होकर बृहस्पति के होने से भाग्यवान, कुटुम्बी, धनवान, सुन्दर भोजन करने वाला, मीठा बोलने वाला, शत्रुनाशक, व्यापारशील, दीर्घायु होता है। किन्तु यदि बृहस्पति केवल द्वीतीय में हो, अपनी राशि में न हो तो धननाशक एवं कुटुंब क्लेशप्रद होता है।
तीसरा भाव:- गुरु यदि तीसरे भाव में हो तो लेखक, विद्वान, यात्रा करने में रूचि, भाई बहन हो। सरकार से सम्मानित, राज दरबार अच्छा, जज, वकील, प्रोफ़ेसर, मुद्रक। धर्मात्मा, दानी, ऐश्वर्यवान, भोगी, कामी, स्त्रीप्रिय, व्यवसायी, विदेशप्रिय, वाहनयुक्त्त, होता है।
चौथा भाव:- यदि गुरु चौथे भाव में हो तो सवारी, वाहन सुख, उत्तम विद्या, घर में सब सुख आराम का सामान, अधिकारी, शिक्षा विभाग अधिकारी, माँ से प्यार करने वाला, मान सम्मान वाला। लॉटरी, वजीफा, बाग़ बगीचे तथा सोना व् धन। यदि कुदृष्टि पड़े तो सब उल्टा। बन्धु पूज्य, मातृ पितृभक़्त, ऐश्वर्यवान, दीर्घायु, रामपुज्य, सद्व्ययी हो। चतुर्थ का बृहस्पति सन्तान प्रतिबन्ध भी होता है।
पाचवा भाव:- यदि गुरु पाचवे भाव में हो तो उच्चाधिकारी, उच्च शिक्षा, मान उदार अच्छा, सम्मानित, सन्तान सुख, लड़का, आज्ञाकारी। ज्योतिषी, लॉटरी, सट्टा से लाभ।बुद्धिमान, विद्वान, काव्यकर्ता, राजमान्य, नीतिविशारद मनुष्य होता है। केवल बृहस्पति पंचम स्थान में हो तो सन्तान नाशक होता है। उदर विक्रतिकारक भी होता है।
छठा भाव:- यदि गुरु छठे भाव में हो तो दिमागी परेशानी, शारीरिक शक्ति कमजोर, मीठा बोले, कुछ करे अथवा न करे स्वयंमेव सब कुछ प्राप्त हो मेडिकल कालिज अथवा हस्पताल में रोजगार। पथरी अथवा मूत्र विकार। वाहनवान, चतुष्पदवान, शत्रुनाशक, रोगरहित और प्रतापी होता है। तथा मानसिक पीड़ा भी रहती है।
सातवाँ भाव:- यदि गुरु सातवे भाव में हो तो विद्वान, ज्योतिषी। स्वयं कमाए, परिश्रम करे तो सुख पाए। गृहस्थ जीवन अशान्त। बाहर घूमने फिरने वाला, भाइयो से दुखी रहे। राज दरबार में उच्च पद नहीं। शिक्षा विभाग, टीचर, स्वास्थ्य विभाग में पैरा मेडिकल स्टाफ। प्रचारक, धर्मी, वचनों का पक्का, एक लड़का, विद्या में रुकावट। सुन्दर, सुवाक, व्यवसायी, धनवान, पराक्रमी, कामी, स्त्री प्रेमी, परस्त्री संसक्त होता है।
आठवा भाव:- यदि गुरु आठवे भाव में हो तो धन नष्ट, बाबा की आयु के लिए बुरा, विद्या में रुकावट, लेखक, मुद्रक, दीर्घायु, परिवार में वरकत, प्रॉपटी डीलर, जेल अधिकारी, डॉक्टर। धन की आवजाही खूब रहे, पिता के काम से बुरा प्रभाव। नीच बुद्धि का मनस्वी ईर्ष्यालु, लोभी, चिंतायुक्त, गुप्तरोगी, वाहन कष्टकारक होता है। और मित्रो द्वारा धन की हानि होती है।
नवा भाव:- यदि गुरु नवे भाव में हो तो मान सम्मान वाला उच्च शिक्षा प्राप्त, उच्चधिकारी, धार्मिक स्वभाव, विदेश यात्रा, तीर्थ यात्रा करे, बुद्धिमान, धर्म ईमान में पक्का, ज्यूलर, जोहरी एवं डॉक्टर वैद्य, हकीम, पिता के लिए उत्तम। पुत्रवान, सुन्दर पराक्रमी मनुष्य होता है।
दसवा भाव:- गुरु यदि दसवे भाव में हो तो बुद्धिमान, अच्छा काम करे फिर भी अच्छा न कहलाए। पिता का सुख कम ही ।सोने के कामो के बुरे परिणाम हो, पूरा अक्लमंद, सलाहकार परन्तु धन की कमी रहे। उन्नति में रुकावट। ज्योतिषी, उदार एवं दयालु। शत्रुहन्ता, राजपूज्य, स्वतन्त्र, भाग्यवान, लाभवान और धनवान तथा कुटुम्बी मनुष्य होता है।
ग्यारहवा भाव:- गुरु यदि ग्यारहवे भाव में हो तो पिता सहायक, पिता के पश्चात दुखी। उच्च शिक्षा, सवारी का सुख, परिजनों को लाभ। सन्तान सुख। रोजगार विलम्ब से मिले। धन की आवाजाही। पुत्र सहायक। यशस्वी, वैदिक, सत्यप्रिय, स्त्रीभक्त, और पराक्रमी हो, किन्तु बृहस्पति अकेले रहने से लाभ को रोकने वाला होता है।
बाहरवा भाव:- यदि गुरु बाहरवें भाव में हो तो तपस्वी, योगी, उच्च शिक्षा वाला, पिता को जन्म के समय खर्च पड़े, प्रेम सम्बन्ध गुप्त रखे, आलसी राज दरबार में कई दफा मन कम लगे। नोकरी छोड़ने की सोचे, गुप्त विद्या जानने वाला। घर में गृहस्थ कार्यो पर खर्च अधिक।चतुष्पदप्रिय, मिष्टवाक, सद्व्ययी, धनवान, सुमुख, सुनेत्र, सुन्दर और धर्मात्मा मनुष्य होता है।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा किसी योग्य ज्योतिर्विद से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए