शंख
शंख से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है। प्राचीन काल से धार्मिक आध्यात्मिक, पूजा पाठ में शंख की महत्वता रही है। अपने गुणों और प्रभावशीलता के कारण हिन्दू पूजा पद्धति में शंख एक अत्यंत शुद्ध पूज्य वस्तु रही है। शंख का अनेक प्राचीन युगों में भी आध्यात्मिक तथा धार्मिक स्वरूप के बारे में काफी वर्णन है। इसे लक्ष्मी का सहोदर तथा भगवान विष्णु का प्रिय पात्र माना जाता है। कोई भी मांगलिक कार्य हो अथवा मंदिर में पूजा अर्चना, आरती हो या कोई शुभ कार्य हो शंखनाद अवश्य किया जाता है। शंख से निकलने वाली ध्वनि से मन में एक अदभुत पवित्रता, आध्यात्मिकता तथा आस्तिकता का संचार होता है। शंख दो प्रकार के होते है।
वामवर्ती शंख- वामवर्ती शंख प्रायः बहुतायत में निकलते है वामवर्ती शंख उन्हें कहते है जिनका पेट बायीं और खुलता है। यह शंख प्रायः आसानी से मिल जाते है। यह विभिन्न प्रकार के होते है। इनका मुँह ऊपर से कटा हुआ रहता है। यह बजाने में काम में आता है बजाने वाला शंख सबसे उत्तम द्वारिका का होता है। पूजा पाठ में शंख ध्वनि शुभ मानी जाती है शंख ध्वनि से देवता प्रसन्न होते है जहाँ तक शंख के आवाज वहाँ तक के वातावरण के भूत प्रेत पिशाच आदि अतृप्त आत्माये भाग जाती है। वेज्ञानिको ने अपने अनुसन्धानों में यह साबित कर दिया है कि शंख की आवाज जहां तक जाती है वहाँ तक का वातावरण प्रदूषण से मुक्त हो जाता है। वहाँ के समस्त कीटाणु शंख की आवाज से नष्ट हो जाते है। प्रतिदिन शंख बजाने से फेफड़ो का व्यायाम होता है। जिससे ह्रदय रोग नहीं होता है।
दक्षिणावर्ती शंख- दक्षिणावर्ती शंख कम मात्रा में प्राप्त होते है। दक्षिणावर्ती शंख उन शंखों को कहते है जिनका पेट दाहिने और खुलता है। दक्षिणावर्ती शंख को दाहिनावर्ती शंख , विष्णु शंख जमना शंख तथा लक्ष्मी शंख भी कहा जाता है। दक्षणावर्ती शंख की उत्पति के विषय में पौराणिक ग्रंथों में इस प्रकार लिखा है। कि समुन्द्र मंथन में जब शंख निकला तो भगवान विष्णु ने इसे अपने दाहिने हाथ में धारण किया था इसीलिए यह भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी जी प्रिय पात्र है।
पूजा के लिये दहिनावर्ती शंख छोटो या बड़ा कोई भी हो, सबका प्रभाव समान है। दहिनावर्ती शंख में भरा हुआ साधारण जल भी पवित्र नदियों के जलो के समान पूण्य देने वाला होता है।दक्षिणावर्ती शंख में रखे जल को पीना अशुभ माना जाता है।
अन्य- सूर्यादि सब ग्रहो, वायु, आकाश के गुण लेकर यह शंख उत्पन हुआ है।
उक्त सब देवो के गुणों को लेकर यह समुन्द्र में पैदा हुआ।
यह चमकीला शंख हमारे पापो को दूर करे।
शंख से हम अमीवा आदि रोगाणुओ और बुद्धि की कमी को दूर कर सकते है।
शंख पूजन विधि-
शंख को जल से धोकर उसे तीन बार बजाए। फिर जल से धोकर उसमे और जल लेकर शालिग्राम शिला पर चढ़ाना अथवा विष्णु लक्ष्मी, गणेश, देवी आदि की मूर्ति या चित्र पर घुमाकर अपने शरीर पर उस जल को छिड़कने से अमंगल दूर होता है। शिवजी पर शंख से जल नहीं चढ़ाते है। इसके बाद पूजा के स्थान पर पुनः विराजमान कर के रोली चन्दन का तिलक लगा फूल चढ़ाकर प्रणाम करना चाहिए
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए