|| रोग निर्णय ||
हमारी कुंडली मे जब कोई ग्रह पीड़ित होता हे तो हमे उस गृह से संबन्धित रोग होता हे! कुंडली मे नो ग्रह होते हे उन नो ग्रहो के रोग भी अलग-अलग होते हे इन नो ग्रहो मे यदि कोई ग्रहपीड़ित हे तो हमे उस ग्रह से संबन्धित रोग होने की संभावना रहती हे यदि हमे कोई रोग होता हे तो हम किस ग्रह की पूजा या उस गृह का उपाए करे जिससे संबधित हमे रोग होता हे आगे सभी नो ग्रहो से संबन्धित रोग बताए जा रहे हे जिससे हम को यदि संबधित रोग होता हे ,तो हम उस गृह की शांति कर सकते हे
|| ग्रहो के रोगकारक्त्व ||
सुर्य के रोग इस प्रकार हे –
- पित्त,, पित्त बड़ना ,पेट मे अम्ल ,जलन खट्टी डकार शरीर पर पित्त के चकत्ते उभरना आदि !
- ज्वर बुखार !
- तपन गर्मी के रोग लू लगना आदि,शरीर मे जलन होना
- अपस्मार ,मिर्गी या कोई तत्सदृश रोग
- हदय रोग हदय की धड़कन बढ़ना हद्द्य धमनी मे रुकावट दर्द आदि !
- क्रोड़ एवं पेट के रोग
- नेत्र पीड़ा
- शत्रुभय
- त्वचा विकार एलर्जी खुजली दाद चमला आदि
- हडडी खिसकना टूटना आदि या हड्डियोंकी कमजोरी !ये रोग होते हे
इनके अतिरिक्त लकड़ी,आग , हथियार विष से उत्पन्न भय स्त्री व पुत्र की और से या उनके कारण भय या व्याधि ! चोपए जानवरो से भय चोर राजा से भय यमराज या भगवान रुद्र का प्रकोप होता हे
||चंद्रमा के रोग;||
चंद्रमा यदि रोगकारक हो तो ये रोग संम्भावित होते हे
1)नींद न आना ,अधिक नींद आना
2)आलस्य
3)कफ़विकार बलगम बनना,ख़ासी जुकाम ,नजला होता !
4) पतले दस्त !
5)ठंड से चढ़ने वाला बुखार
6) सिंग वाले व पानी के जानवरो से भय
7)भूख कम लगना ,अरुचि
8)स्त्री को कष्ट या स्त्री से कष्ट ।
9) कामिला रोग बड़ा पीलिया रोग
10)मानसिक बेचेनी
11)जल से भय
12) दुर्गा किन्नर, सर्पराज ,यमराज यक्षिणी, आदि से भय होता हे
13)खून से संबन्धित विकार
|| मंगल के रोग ||
मंगल इन रोगो का कारक हे !
1)अधिक प्यास अधिक लोभ ,अधिक उतावलापन ,साहस से उत्पन्न रोग !
2) रक्त विकार !
2) पित्त से उत्पन्न भूखार !
3) अग्ग्णि से उत्पन्न रोग !
4) विष,शस्त्र की पीड़ा !
5) त्वचा रोग ,कुष्ठ
नेत्र रोग !
6) मिर्गी!
7) अस्थिमज्जा ( bone-marrow) का क्षय!
8) शरीर मे चोट, राजा पुत्र, मित्र से वैर या युद्ध !
9) राक्षस, गन्धर्व घोर ग्रह से भय!
10)धड़ मे कोई बड़ा विकार !
11)पेट मे या कहीपर गुल्म( ट्यूमर ) फोड़ा आदि
|| बुध के रोग ||
बुध निम्न्लीखित रोगो का कारक हे –
1)बुद्धि का भ्रम!
2)कठोर वचन!
3)गले व काक के रोग !
4) ज्वर!
5)त्वचा वीया !
6)पीलिया !
7)खराब सपने दिखना ।
8)दाद खाज !
9)आग की चपेट मे आना !
10) पृथ्वी महल वाहनो से भय तथा ग्र्हपीड़ा !
11)नेत्र रोग
12)पित्त , बलगम व वायु के रोग
13)विष संक्र्मन
|| गुरु के रोग ||
ब्र्हस्प्ति इन रोगो का कार्क हे !
- गुल्म (भीतरी ट्यूमर ) ज्वर,शोक,बेहोशी,कफ़रोग, !
- कान के रोग ,सज्ञा शून्यता,शरीर सुन्न होना , पक्षाघात , लकवा आदि !
- मंदिर या देव स्थान की धन राशि को चुराने से उत्पन्न दोष !
- ब्राहम्ण का शाप
- किन्नर ,यक्ष,देवता,नाग,विघाधरों का कोप !
- विदान,गुरु या उत्क्रष्ट व्यक्ति का कोप !
|| शुक्र के रोग ||
शुक्र इन रोगो का कारक हे –
1)बाजारू स्त्री की संम्पर्क से उत्पन्न रोग सूखा रोग ! योगिनी योक्षिणी मातृका से उत्पन्न दोष प्रियमित्र से संबंध बिगड़ने का शोक आदि !
2) पीलिया , कफ़रोग , वातरोग नेत्र रोग , मधुमेह,गुप्तरोग ,मूत्रदोष, काम सम्बन्धी रोग , वीर्य हानि
शनि इन रोगो का कारक हे !
1)वात कफ रोग वायु विकार वातरोग पेरो मे कष्ट
2)मुसीबत
3)उनीदापन् , थकावट !
4)बुद्धि विभ्रम,पिशाच गण ,पापी लोगो ,दुष्टो,दुवर्यसनों से पेदा होने वाले रोग।
5)भीतरी गर्मी
6)बगलो मे चोट या सहयोगी की हानी !
7)स्त्रीपुत्रि की विपति
8)अंग-भग
9)हदय रोग
10)पेड़ पत्थर से चोट
11)पेट के रोग
12)मुसीबत
13)नोकरो से उत्पन्न परेशानिया |
13)पेट के रोग
14)उनीदापन,थकावट
15) पेरो मे कष्ट
|| राहू केतू के रोग ||
राहू इन रोगो का कारक हे !
1)हदय रोग !
कोढ़
3)बुद्धिभ्रम!
4)विषकोप
5)पेर का रोग ,बनावटी अंग लगना
6)पिशाच या सर्पभय
7)स्त्रीपुत्र की विपति !
|| केतू के रोग ||
केतू के रोग इस प्रकार हे –
1)ब्राह्मण व क्षत्रिय से विरोध !
2)शत्रुभ्य
3)प्रेतभ्य, विषभ्य,शरीर पीड़ा गंदगी से उतपन्न रोगो !
4)मै जो ग्र्ह हो , षेष्ठेश संबंधी ग्रहो की बलव्ता देखकर , बलवान रोग शोक,उन ग्रहो की दहशांतद्रत्शा मे कहना चाहिए !………………………………………………………………………….!
हमने हमारे प्रारब्ध ज्योतिष पेज ओर वैबसाइट पर सभी ग्रहो के उपाय डाले हुए है। जिसको भी ग्रहो के उपाय चाहिए वो वहा से ले सकते है।
पर जब भी रोग होता है या शारीरिक कष्ट होते है तो महाम्रतुंजय मंत्र के जाप यथा संभव करते रहना चाहिए । मृतुंजय मंत्र के जाप बीमारी मे विशेष लाभकारी होते है।