पूर्णायु योगः-
यदि केन्द्र स्थान शुभग्रहों से युक्त हो, लग्नेश शुभग्रह के साथ बैठा हो तथा गुरु द्वारा देखा जाता हो, तो पूर्णायु योग होता है।
=यदि लग्नेश केन्द्र स्थान में हो तथा उसके साथ गुरु और शुक्र बैठे हो तो
उपयुक्त योग बनता है।
=यदि तीन ग्रह उच्चराशि के हो तथा लग्नेश व् अष्टमेश एकत्र हो तथा
कुण्डली का अष्टम स्थान पापग्रह से रहित हो, तो भी पूर्णायु योग होता है।
=यदि अष्टम भाव में तीन ग्रह हो या तीन ग्रह उच्चराशि के, मित्र स्थान के
तथा अपने ही वर्ग में हो एवं लग्नेश बलवान हो, तो पूर्णायु योग बनता है।
यदि कोई भी एक ग्रह उच्चराशि में बैठा हो और उसके साथ शनि और अष्टमेश भी हो, तो भी पूर्णायु योग होता है।
=यदि पापग्रह 3,6,11 वे भाव में हो, शुभग्रह केन्द्र(1,4,7,10) यो त्रिकोण
(5,9) में हो एवं लग्नेश बली हो, तो पूर्णायु योग होता है।
यदि 6,7 और 8 वें भाव में शुभग्रह हो तथा 3,6,11 वे भावो में पापग्रह हो, तो पूर्णायु योग बनता है।
=यदि पापग्रह 6 ठे तथा 12 वें भाव में हो, लग्नेश केंद्र स्थान में हो या आठवा
भाव पापग्रह से युक्त हो और दशमेश अपनी उच्चराशि में हो, तो पूर्णायु
योग होता है।
=यदि अष्टमेश जिस भाव में हो, उसका स्वामी जिस राशि में स्थित हो उस
राशि का स्वामी और लग्नेश केन्द्र में हो तो पूर्णायु योग बनता है
=यदि द्विस्वभाव राशि का लग्न हो, लग्नेश केन्द्र स्थान में हो या अपनी
उच्चराशि का अथवा मूल त्रिकोणगत हो, तो भी पूर्णायु योग बनता है।
=यदि द्विस्वभाव लग्न हो और लग्नेश से केंद्र में दो पापग्रह हो तो पूर्णायु योग
बनता है।
फल:- यदि कुण्डली में उपयुक्त ग्यारह योगों में से कोई भी एक योग हो, तो जातक पूर्ण आयु प्राप्त करता है।
नोटः- ऊपर कुण्डली में पूर्णायु के 11 योग दिये गये है इनमे से कोई भी एक या एक से अधिक योग होने पर जातक पूर्ण आयु प्राप्त करता है।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए