काहल योगः-
=नवम भाव का स्वामी और चतुर्थ भाव का स्वामी परस्पर केन्द्र में हो और
लग्नेश बलवान हो तो काहल योग होता है।
=चौथे भाव का स्वामी अपने उच्च, नीच या स्वराशि पर हो एवं दशम भाव
के स्वामी के साथ बैठा हो या उसके द्वारा हो तो काहल योग होता है।
फल- काहल योग में उत्पन्न जातक बलिष्ठ शरीर, वीर और दृढ़ चरित्र का व्यक्ति होता है। साहसिक कार्यो में उसकी प्रवृत्ति खूब रमती है तथा वह मिलिटरी या स्थल सेना में उच्च पद प्राप्त करता है। ऐसा जातक जीवन में सभी सुखों को भोगता है, परन्तु मुर्ख भी होता है तथा मूर्खता अथवा स्वयं की असफल नीति के कारण ही उसका पतन होता है।
नोटः- आधुनिक युग में इस योग को रखने वाला जातक सुखी नहीं रह सकता और न इस प्रकार की प्रवृति ही आधुनिक युग में मान्य है। फिर भी यदि किसी जातक की कुण्डली में यह योग हो, तो उसे यह सलाह देनी चाहिए की वह सेना में भर्ती हो जाये,जहाँ उसके उन्नति करने के अवसर आते रहते है। यदि यह योग बलिष्ठ हो और साथ ही कुण्डली में राज योग भी हो, तो ऐसा व्यक्ति कलेक्टर भी बन सकता है।
कुम्भ लग्न की कुण्डली में यह योग अधिक प्रभावशाली माना जाता है।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा किसी योग्य ज्योतिर्विद से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए |