केतु ग्रह के जीवन पर प्रभाव
केतु
राहु की तरह यह भी छाया ग्रह ही है। जिस राशि,नक्षत्र अथवा जिस ग्रह के साथ दृष्टि सम्बन्ध बनाता है उसी प्रकार का ही यह प्रभाव करता है। यह शास्त्रो के अनुसार मोक्ष का कारक माना गया है।
यह सदा वक्रीय रहता है। राहु केतु एक दूसरे से सातवे रहते है।सारा राशि चक्र पूरा करने में 18 वर्ष तथा एक राशि में लगभग 18 महीने रहता है।
यदि राहु सिर है तो यह धड़ है। राहु दिमाग की नक्लो हरकत का मालिक है तो केतु पैरो की नक्लो हरकत का मालिक है।इसे कुते की संज्ञा भी दी गई है।यह मंगल की भांति प्रभाव करता है। यह चंद्र के लिए ग्रहण होता है। अतः चन्द्र के फल पर बुरा प्रभाव डालता है।
प्रभाव एवं क्या क्या विचारना:- सुनना, पैरो की नक्लो हरकत, पेशाब, गुप्तांग, होमिओ पेथी, स्पर्श शक्ति, दुर्घटना, डर, पूर्व कर्म, शत्रुता, लड़का, औलाद, आदि इसके प्रभाव क्षेत्र में आते है । नाना अग्नि मोक्ष, दिल का दौरा, लड़का, दोरंगा कुत्ता, दुर्घटना आदि संबंधी भी इससे ही विचार होता है। केला, गधा, छिपकली, तिल शरीर, सूअर, नर गौरय्या चिड़िया आदि का भी कारक है
रोग:-गुप्त रोग, जोड़ अथवा साधारण दर्द, पैरो का दर्द एवं विकार। साधारण फोड़े फुंसी, गिल्टी, सुजाक, वीर्य रोग, पेशाब रोग, नाक के रोग, रीढ़ की हड्डी के रोग, दिल का दौरा, स्पर्श शक्ति का असंतुलन, अग्निकांड, दुर्घटनाए भी करवाता है। यदि शुक्र केतु इकट्टे हो तो शर्करा रोग देते है। यदि शुक्र केतु इकट्ठे चौथे भाव कुण्डली में होंगे तो अवश्य ही शर्करा रोग होगा।
निशानी:- दोरंगा कुत्ता गुम हो जाना श्रवण शक्ति कम हो जाना, छिपकली का अचानक गिर जाना बुरे केतु की निशानी होगी घर में लड़का न होना बुरे केतु की निशानी है।
मकान:- जिस भाव में केतु बैठा हो उस दिशा में आगे की तरफ बंद होगा अथवा रोशनदान आदि सर्वाधिक कम होंगे। उस दिशा में अग्नि का सम्बन्ध भी हो सकता है अथवा कोठियों में कुते का स्थान होगा। यदि केतु 9 वे स्थान कुण्डली के होगा तो घर से आगे जाती गली बन्द होगी।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा किसी योग्य ज्योतिर्विद से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए |