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लग्न से छठे,सातवें और आठवे भाव में शुभग्रह हो तथा उन पर पापग्रहों की दृष्टि न हो और न उसके साथ पापग्रह हो तथा चतुर्थ भाव में शुभग्रह हो, तो लग्नाधि योग बनता है।
फल:- लग्नाधि योग में जन्म लेने वाला जातक विद्वान होता है तथा उसकी विद्वत्ता का लोहा दूसरे भी मानते हैं। शारीरिक रूप से भी ऐसा व्यक्ति हष्ट-पुष्ट, स्वस्थ्य और सबल होता है तथा अधिकतर वीतरागी या साधु स्वभाव वाला होता है। वह सांसारिक प्रपंचो में कम उलझता है तथा विख्यात होता है।
नोटः- अधि योग एवं लग्नाधि योग में मुख्य अन्तर यह है कि अधि योग में चन्द्र मुख्य होता है तथा चन्द्र स्थान से ही गणना होती है, परन्तु लग्नाधि योग में लग्न मुख्य होता है तथा लग्न स्थान में ही गणना होती है। इसके अतिरिक्त लग्नाधि योग में दो शर्ते और भी है। प्रथम, लग्न से 6,7,8वें स्थान में शुभग्रह ही हो और उनके साथ दूसरा कोई ग्रह न हो एवं दूसरा व् लग्न से चौथा भाव शुभग्रह से युक्त हो।
कुछ विद्वान् चौथे भाव में शुभग्रह की आवश्यकता नहीं समझते, परन्तु चतुर्थ भाव में पापग्रह नहीं हो, ऐसा वे जरूर मानते है।लग्नाधि योग भी अधि योग की भांति ही प्रभावोत्पादक होता है।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए