मालिका योगः:-
किसी भी भाव से 7 ग्रह 7 भावो में (सू . चं . मं . बु . ब्र. शु . श ) हो तो भाव सम्बन्धी मालिका योग होता है
फल- यदि लग्न से लगातार सातो ग्रह सात भावो में हो , तो लग्न मालिक योग कहलाता है। यह योग होने पर जातक शासकीय पद प्राप्त करता है अथवा सेना में कमाण्डर का पद सुशोभित करता है। उसे वाहन का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।
धन भाव से लगातार सात भावो में सातो ग्रह रहने से धन मालिक योग बनता है।ऐसा जातक सच्चा पितृभक्त होता है तथा उसे जीवन में द्रव्य की चिंता नहीं रहती। ऐसे जातक का शरीर स्वस्थ्य, सुन्दर , एवं मनोहर होता है तथा वह अपने कार्यो से प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
तीसरे भाव से लगातार सात भावो में सातो ग्रह रहने से विक्रम मालिका योग बनता है।
यह योग रखने वाला व्यक्ति धनी एवं पूर्ण पराक्रमी होता है परंतु ऐसा जातक रोगी भी रहता है तथा दवाइयों पर उसका धन व्यय होता रहता है।
चतुर्थ भाव से ऐसा योग होने पर सुख मालिका योग कहलाता है ऐसा व्यक्ति दयालु , दानी , तथा परोपकारी होता है। इसके साथ ही वह भ्रमण भी करता है तथा अपने कार्यो से ख्याति लाभ करता है।
पंचम भाव से ऐसा योग होने पर पुत्र मालिका योग कहलाता है। पुत्र मालिका योग में उत्पन्न होने वाला जातक वेद शास्त्रों में पूर्ण विश्वास रखने वाला, यज्ञ करने वाला तथा कीर्तिवान होता है।
छठे भाव से ऐसा योग बनने पर शत्रु मालिका योग कहलाता है। इस योग में उत्पन्न जातक का भविष्य अनिश्चित रहता है। कभी तो उसके पास बहुत अधिक द्रव्य आ जाता है और वह धनवान कहलाने लग जाता है, परन्तु कभी दरिद्रतावस्था भी आ जाती है और वह द्रव्य के पीछे परेशान रहता है।
सप्तम स्थान से यह योग होने पर कलत्र मालिका योग कहलाता है। इस योग में उत्पन्न जातक दुष्चरित्र, तथा ऐश्वर्य सम्पन्न होता है।
अष्टम भाव से मालिका योग होने पर रन्ध्र मालिका योग कहलाता है । जो जातक इस योग में जन्म लेता है, वह पूर्ण आयु प्राप्त करता है, परन्तु उसके जीवन में धन का सर्वदा आभाव रहता है। उसकी गणना सफल व्यक्ति के रूप में की जाती है, परन्तु पारिवारिक मतभेद बने रहते है।
नवम भाव यह योग होने पर भाग्य मालिका योग कहलाता है। ऐसा व्यक्ति सच्चरित्र एवं सद्गुणी होता है तथा प्रत्येक कार्य में दुसरो की सहायता करने को तत्पर रहता है
दशम भाव से प्रारम्भ होने पर कर्म मालिका योग कहलाता है। जो जातक कर्म मालिका योग में जन्म लेता है वह ईश्वरभक्त , धर्म भीरु , धार्मिक कार्य करने वाला एवं सज्जन व्यक्ति होता है तथा उसका सर्वत्र आदर होता है।
एकादश भाव से प्रारम्भ होने पर लाभ मालिका योग कहलाता है। लाभ मालिका योग में उत्पन्न होने वाला जातक चतुर होता है तथा कठिन से कठिन संघर्षो में भी वह नहीं घबराता है।
द्वादश भाव से क्रमश सातो भावो में सात ग्रह रहने से व्यय मालिका योग कहलाता है। ऐसा जातक पूर्ण ईमानदार होता है तथा निष्पक्ष न्याय करने के कारण पूजा जाता है
नोटः- उपयुक्त कुल 12 प्रकार के 12 मालिका योग होते है तथा लग्न से प्रारम्भ होने पर लग्न मालिका पंचम स्थान से प्रारम्भ होने पर पुत्र मालिका और इसी प्रकार अन्य भावो से प्रारम्भ होने के कारण ही उस भाव से सम्बंधित उस मालिका योग का नाम होता है
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए