चन्द्रमा में राहु की अंतर्दशा:-
केन्द्र या त्रिकोण में स्थित राहु हो तो चन्द्रमा की दशा में राहु की अंतर्दशा आने पर आरम्भ में अल्प शुभ, बाद में शत्रु पीड़ा, महाभय, चोर, सर्प, राजा से भय, पशुनाश, बन्धुनाश, मित्रहानी, माननाश तथा मानसिक व्यथा होती है।
वही राहु लग्न से उपचय स्थान में शुभग्रहों से युत दृष्ट हो और योगकारक ग्रह से सम्बन्ध हो तो अन्तर्दशाकाल में सर्वकायार्थ की सिद्धि, वाहन सुख की प्राप्ति तथा अभीष्ट की सिद्धि होती है।
बलहीन राहु दशेश से अष्टम या द्वादश में स्थित हो तो चन्द्रमा की दशा में राहु की अंतर्दशा आने पर स्थानभ्रंश, मानसिककष्ट, पुत्र कलेश, महाभय, कही स्त्रीकष्ट, कही रोग से बड़ा भय, जीवो के विष से भय, चोर, सर्प तथा राजा से पीड़ा होती है।
दशेश से केंद्र , त्रिकोण, तृतीय या एकादश स्थान में स्थित राहु हो तो चन्द्र दशा में राहु की अंतर्दशा आने पर पूण्यतीर्थफल की प्राप्ति होती है, देवदर्शन, परोपकार, यदि वही राहु 2,7 स्थानों में हो तो शारीरिक पीड़ा होती है।
उपाय:- छाया दान करना चाहिए
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए