मंगल में मंगल की अंतर्दशा:-
केन्द्र, त्रिकोण, लाभस्थान, तृतीय या धनस्थान में शुभग्रह तथा लग्नेश के साथ मंगल हो तो मंगल की दशा में अपनी ही अंतर्दशा में राजकृपा से ऐश्वर्य प्राप्ति, लक्ष्मी का विलास, विनष्ट राज्य तथा अर्थ का लाभ, पुत्रोत्सव तथा गवादि पशुओं से परिपूर्ण घर होता है। वही मंगल अपने उच्च स्वभवन में स्वननाश में सबल रहे तो गृह, क्षेत्र आदि वृद्धि ,गो, महिषी आदि पशुओं का सुख, और महाराज की कृपा से अभीष्ट सिद्धि भी होती है।।
अष्टम या द्वादश में पापग्रह दृष्ट या पापयुक्त मंगल हो तो अपनी दशा के अपनी ही अंतर्दशा में मूत्रकृच्छ आदि रोग , क्लेशाधिक्य, ब्रणभय, चोर, सर्प, राजा से पीड़ा धन-धान्य पशु का विनाश होता है। वही मंगल 2,7 के अधिप हो तो देहपीड़ा, मनोदुःख होता है।।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए