गुरु का जीवन पर प्रभाव
गुरु
यह शुभ ग्रह है। धनु एवं मीन राशि का स्वामी है। साधारण स्वभाविक कुण्डली में यह 9 वे तथा 12 भावो का स्वामी है। यह एक राशि में प्रायः एक वर्ष रहता है ओर सारा राशि चक्र घूमने के लिए लगभग 12 वर्ष लगते है। बारह महीनों में यह लगभग 4 महीने वक्रीय भी रहता है। इसकी दृष्टि सूर्य, चन्द्र एवं शनि के साथ बड़ी महत्वपूर्ण होती है। इनके साथ दृष्टि सम्बन्ध होने से यह क्रमशः शरीर, स्व, चन्द्र के साथ बड़ी देनिक के कार्य कलाप एवं स्वास्थ्य तथा शनि के काम काज, रोजगार पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। सबसे बड़ा ग्रह एवं अति शुभदायक है। न्यायप्रिय, सच्चाई, सद्गुण, अच्छी बातें तथा सुख देने वाला है। शास्त्रो का कथन है कि इसमें शुक्र जिसे नारी अथवा स्त्री की संज्ञा दी गई है, छुपा हुआ है। शुक्र मिट्टी भी मानी गई है जो समस्त बीज का पालन पोषण करती है। इसलिए जब बीज मिट्टी में होता है अंकुरित होकर बाहर हवा (गुरु) ढूंढने के लिए बाहर आता है। इस प्रकार ही समस्त सृष्टि की उत्पत्ति होती है। अथवा यूं कह ले की यह सारा साम्राज्य गुरु का ही है।
प्रभाव एवं क्या क्या विचारना:- यह ग्रहो का भी गुरु है। इसके साथ कोई भी शत्रुता करे, यह कम ही किसी के साथ शत्रुता करता है तथा सदा शुभ फल ही देता है। इसके प्रभावाधिन जातक दानी, उदार, सच्चरित्र, ज्ञानी, विद्वान, शान्त स्वभाव, सच्चे आचरण वाला, परोपकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, राज्य में उच्च पद, मान सम्मान कला, उच्चधिकारी, कोमलह्रदय, मधुर वाणी बोलने वाला बनता है। सत्य एवं न्याय का प्रेमी, सहनशील, दिनों, गरीबो का सहायक, ईश्वर भक्त, अच्छा सलाहकार, ज्ञानी, सुख सम्पति वाला, चतुर, परमारथ, तीर्थ यात्रा, योगाभ्यासी, दीर्घायु भी इसके प्रभाव क्षेत्र में आते है। गुरु के प्रभाव के समय जातक को धन दौलत, मान सम्मान, औलाद, जायदाद, आयु, अच्छा स्वास्थ्य एवं उन्नति होती है। इसलिए न तो हाथो उपार्जन करना पड़ता है और न ही चालाकी अथवा होशियारी की आवश्यकता पड़ती है सब काम स्वतः बनने लगते है। यदि जन्म कुण्डली में गुरु शुभ हो तो पिता आदि की और से स्वयं ही धन सम्पति मिल जाती है, नही तो ससुराल की ओर से ही यह सब प्राप्त हो जाता है लॉटरी, गड़ा धन, वजीफा, नि:संतान की जायदाद व् धन भी मिलते है। बलहीन अथवा बुरा गुरु बुरा प्रभाव ही डालता है तथा अपने प्रभावाधीन प्रभावों में खराबी करता है। इश्क की तरफ झुकाव, प्यार मुहब्बत के कारण कामो में रुकावट और सन्तान विहीन अथवा संतान होकर कई बार कालग्रस्त भी हो जाती है। विवाह एवं ग्रहस्थ जीवन, नोकरी एवं उन्नति रुक जाती है अथवा दुःख दायक हो जाती है।
बुद्धि ज्ञान, पुत्रधन, शारीरिक, पुष्टि, पुत्रसुख, बड़ा भाई, बुजुर्ग, विद्या का गुरु से विचार किया जाता है। धन, धर्म, संतान, सम्पति, आध्यात्म, कोष, खजाना, न्याय, अंतरिक्ष, सृष्टि का फैलाव, आत्मा का फैलाव एवं विस्तार का ज्ञान भी इससे ही होता है। वायु, पिता, गुरु, सुख, रूह, का विचार भी इससे ही होता है। विस्तार किसी भी काम का, सोना सरकारी कृपा, रेविन्यू , कानून, विद्या आदि भी इसके प्रभावाधीन आते है। यह2,5,9,10,11, भावो का कारक भी है। इन भावों का फल विचार करते समय गुरु को विचारना बड़ा जरुरी होता है।
रोग:- गुरु बलहीन तो जिगर, कान, पिंडली, पैर, कमर,से जंघा तक प्रभाव डालता है। कैंसर , पीलिया, रक्तदोष, पैदा करता है।
निशानी क्या:- सोने का नुकसान, मिथ्या अफवाहे, विद्या समाप्त, बन्द हो जाना, अचानक सोना बेचना, गुरु बलहीन समझे। पीपल, वट, धार्मिक स्थानों का निरादर करना, गुरु को स्वयं बुरा कर लेना होता है।
मकान:- जिस भाव में जन्म कुण्डली में गुरु बैठा हो उस दिशा में मंदिर, पाठशाला, पूजा का सम्मान , इष्ट स्थान, वायु का मार्ग, दरवाजा पीपल आदि होते है।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा किसी योग्य ज्योतिर्विद से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए |