चन्द्र
यह कर्क राशि का स्वामी है। आम साधारण अथवा स्वभाविक कुण्डली में यह चौथे भाव का मालिक है। छाती, पेट एवं अल्सर इसके घेरे में आते है। इसका रंग दूधिया सफ़ेद है। यह सारे राशि चक्कर को 27.324 दिनों तक में पूरा कर लेता है। औसतन एक राशि में 2.273 दिन रहता है। इसकी प्रतिदिन चाल अथवा गति 11 अंश से 15 अंश तक है तथा औसतन इसकी गति 13 अंश प्रतिदिन है इस प्रकार एक अंश पार करने के लिए इसे दो घण्टे से कुछ कम समय लगता है। यह पृथ्वी का ही उपग्रह है तीव्र गति एवं पृथ्वी के सब ग्रहों में निकटम होने के कारण इसका कुण्डली पर प्रभाव बहुत ही महत्व रखता है। जितना यह बलवान होता है अथवा जिस तरह का यह होता है उसी तरह ही शरीर एवं मन पर प्रभाव डालता है पूर्ण चन्द्र शुभ फल देता है। तथा श्रीण चन्द्रमा अशुभ माना जाता है। सूर्य से 72 अंश के अन्दर अन्दर चन्द्रमा अशुभ फल ही देता है। मानसिक विकास पर विशेष प्रभाव डालता है।
प्रभाव:- चन्द्रमा का कल्पनाशक्ति , माता दूध, पानी, शरीर, बाई आंख, फेफड़े, खून, जीवन, स्वभाव, पद, आयु, भय, धन दौलत, रत्न, चांदी, राज सम्मान,मन, यात्रा, समाचार, लघु उद्योग, व्यापार, रानी, परिवर्तन, गले से ह्रदय तक प्रभाव होता है।
क्या-क्या विचारना:- चित्त, मन,माँ, प्रसन्नता, बुद्धि, राजा रानी, धन, ह्रदय, दूध, जल, तालाब, कुआँ, यात्रा, दौलत, व्यापार, परिवर्तन आदि। चन्द्रमा जहाँ जहाँ प्रभाव अथवा असर करता है, सबका ही विचार किया जाता है। चन्द्रमा चौथे भाव का कारक भी है । स्पष्ट कुण्डली अनुसार चौथे भाव का स्वामी चाहे कोई भी हो साथ ही चन्द्रमा की स्थति देखनी भी आवश्यक होती है क्योंकि यह चौथे भाव का पक्का कारक ग्रह है।
रोग:-अशुभ चन्द्र कई विकार देता है। निंद्रा रोग, फेफड़े के रोग, दस्त लगना, कफ, बच्चो के रोग, पागलपन, स्वाद नष्ट होना, पाचन विकार, रक्त विकार, कमजोरी,शरीर से जल समाप्त होना, पीलिया, बच्चो का सूखा रोग, पानी से भय, हैजा आदि। ह्रदय रोग जैसे दिल का धड़कना, नेत्र दोष अथवा रोग भी होता है।
प्रत्येक ग्रह के बलवान/ बलहीन होने से अथवा शुभ या अशुभ होने से प्रभाव पड़ता है, जैसे यदि कुण्डली में चन्द्रमा बलवान होकर बैठा है एवं शुभ है तो सुख मिलता है । मन प्रसन्न रहता है। दयालु, मधुर भाषी व् सत्यवादी होता है। व्यापार में रूचि लेता है और लाभ प्राप्त करता है । धर्म में विश्वास रखने वाला होता है। घर में दुधारू पशुओं से लाभ मिलता है। सफेद रंग के पदार्थ, गहने भोजन आदि से प्रेम करता है। शुभ चन्द्र वाला जातक सुन्दरता का प्रेमी , चंचल स्वभाव, आरामदायक जीवन व्यतीत करने वाला, कामुक एवं अच्छी कल्पनाशक्ति का स्वामी होता है। अगर यदि चन्द्र बलवान न हो तो फिर इन सब बातों का उल्टा ही होता है स्वभाव बुरा, अति भोगी, ओरतों के पीछे दौड़ने वाला, आहार-व्यवहार घटिया, बुराई, चुगली करने वाले तथा मन में प्रतिशोध की भावना रखने वाले बन जाते है।
ग्रह निशानी:- जैसे की बताया गया है कि अशुभ चन्द्र आधीन दायरे अथवा प्रभाव में आने वाली सब बातों पर अच्छा असर नहीं करता । चन्द्र बुरा, अशुभ हो गया है इसकी निशानियों से पता लग जाता है जैसे बच्चे को सुखा रोग हो जाएं घोड़े की मृत्यु हो जाएं, तालाब कुआँ सुख जाए, माँ का निधन हो जाए तो समझ लेना चाहिए की चन्द्र शुभ प्रभाव वाला नहीं रहा है। जैसे चन्द्र छठे भाव हो तो यह भाव इसके शत्रुओ का है। वास्तव में यह भाव बुद्ध केतु का है। इस भाव से प्रतिदिन दफ्तर जाना , मामा, शत्रु, बीमारी एवं यात्रा की जानकारी मिलती है। यदि चन्द्र यहां हो तो यह अशुभ फल देगा, यूं ही यात्राएं बहुत होगी , जगह जगह अथवा तबादले बहुत होंगे, गुर्दे एवं पेट में खराबी पैदा करेगा, रात को पिया दूध बीमारी का कारण बनेगा।
मकान में संकेत:- प्रत्येक ग्रह की अच्छी अथवा बुरी निशानी उसके प्रभावाधीन आती वस्तुओं से मिल जाती है। कुण्डली द्वारा यह सहज ही पता लग जाता है। जिस भाव चन्द्र बैठा है, घर की उस दिशा की ओर दृष्टिपात करे । उस दिशा की ओर ही नल , टूटी , पानी का टैंक, कुआँ, जानदार दुधारू पशु अथवा बेजान दूध देने वाले पेड़ आदि होंगे। यदि शुभ चन्द्र है तो ये सब ठीक हालत में होंगे तथा यदि अशुभ चलेगा तो ख़राब हालत में होंगे।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा किसी योग्य ज्योतिर्विद से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए |