यदि किसी कुण्डली में सूर्य से दूसरे तथा बाहरवें दोनों भावो में ग्रह विद्यमान हो, तो उभयचरिक योग बनता है।
फल:- यदि सूर्य से द्वितीय भाव तथा द्वादश भाव दोनों में शुभग्रह हो तो शुभ उभयचरिक योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सहनशील होता है। तथा प्रत्येक प्रकार की परिस्थिति को सहन करने में सक्षम होता है।
ऐसा व्यक्ति न्याय करने में निपुर्ण होता है तथा वादी प्रतिवादी को समान रूप से देखता हुआ निष्पक्ष निर्णय करता है, ऐसा जातक बलवान स्थिर, अविचलित एवं पुष्ट ग्रीवा वाला होता है।
अशुभ उभयचरिक योग में जन्म लेने पर व्यक्ति पाप करने वाला, मन में कपट भाव रखता हुआ झूठ न्याय करने वाला , दुसरो के अधीन रहने वाला एवं दरिद्र जीवन बिताने वाला होता है।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए