सूर्य में केतु की अंतर्दशा फल:-
=> सूर्य की दशा में केतु की अंतर्दशा आने पर देहपीड़ा,मनोव्यथा, धनव्यय,
राजकोप, स्वजनों से उपद्रव और लग्नेश के साथ केतु के रहने पर
अंतर्दशारम्भ में सौख्य, मध्य में क्लेश और अंत में मृत्यु समाचार का
आगमन होता है।
=> दशेश से अष्टम या द्वादश स्थान में पापयुक्त केतु हो तो गाल, दांत में
रोग, स्थांभ्रंश, अर्थहीन, मित्रहानी, विदेशयात्रा, शत्रुपीड़ा तथा महान भय,
ये सभी होते है।
=> लग्नेश से उपचय(3,6,10,11) स्थान में योगकारक ग्रह से युक्त,
शुभनवांश या शुभवर्ग में केतु हो तो शुभकर्म फलोदय, स्त्री पुत्रसुख,
सन्तोष, प्रियो की वृद्धि, विलक्षण वस्त्रो का लाभ , यशोवृद्धि और द्वितीय,
सप्तम के नाथ होने पर अपमृत्युभय होता है।
उपाय=> शांति के लिए दुर्गामंत्र जप, तथा कल्याणकर छाया दान करना
चाहिए।
उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले कुंडली के और भी ग्रहो की स्तिथि, बलाबल को भी ध्यान में रख कर तथा हम से परामर्श कर ही किसी भी निर्णय पर पहुचना चाहिए