लग्नाधि योगः

– लग्न से छठे,सातवें और आठवे भाव में शुभग्रह हो तथा उन पर पापग्रहों की दृष्टि न हो और न उसके साथ पापग्रह हो तथा चतुर्थ भाव में शुभग्रह हो, तो लग्नाधि योग बनता है। फल:- लग्नाधि योग में जन्म लेने वाला जातक विद्वान होता है तथा उसकी विद्वत्ता का लोहा दूसरे भी मानते हैं।…

सूर्य का सिंह राशि मे आगमन :

—— ===================== 17 अगस्त 2018 को सूर्य अपनी स्वराशि सिह राशि में प्रवेश कर चुके है , जो की आइए देखते है की ये आपकी राशि के लिए क्या शुभ और अशुभ फल लेकर आये है। मेष राशि :- सूर्य के प्रभाव से आप अत्यंत विद्वान, बुद्धिमान, प्रभावशाली तथा वाणी के धनी होगे एवं अपने…

केमद्रुम योगः

– यदि कुण्डली में चन्द्रमा के दोनों ओर कोई भी ग्रह न हो, तो केमद्रुम योग बनता है। फल:- केमद्रुम योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति गन्दा तथा दुखी रहता है। वह अपने गलत कार्यो के कारण ही जीवन भर परेशान रहता है। आर्थिक दृष्टि से वह गरीब होता है तथा आजीविका के लिए दर-दर…

दुरधरा योगः-

चन्द्रमा से दूसरे और बाहरवें, दोनों स्थानों पर ग्रह हो, तो दूरधरा योग बनता है। फल:- दूरधरा योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति योग्य, दृढ़निश्चयी, धनवान एवं अपने कार्यो से प्रसिद्धि प्राप्त करने वाला होता है। नोटः- दुरधरा योग एक महत्वपूर्ण योग है, जिसमे जातक धन, प्रसिद्धि पराक्रम एवं आदर प्राप्त करता है , परन्तु…

अनफा योग:

– यदि चंद्रमा में बाहरवें भाव में (सूर्य को छोड़कर) कोई ग्रह हो तो अनफा योग होता है। फल:- जिसकी कुण्डली में यह योग होता है, उसका व्यक्तित्व चुम्बकीय होता है। तथा उसके शरीर का अंग प्रत्यंग सुन्दर होता है समाज में उसका सम्मान होता है। वह नम्र, सुशील, सद्गुणी तथा विचारवान होता है। वह…

अशुभ योग

:- यदि जन्म लग्न पापग्रह या अशुभ ग्रह से युक्त हो तो, अशुभ योग बनता है। फल:- इस योग को रखने वाला जातक कामी होता है। तथा दुसरो का पैसा हड़प जाता है वह जीवन में असफल रहता है तथा दुर्भाग्य पग पग पर उसे बाधा पहुचता रहता है। उक्त जानकारी सुचना मात्र है, किसी…

शुक्र का कन्या राशि मे आगमन

शुक्र का कन्या राशि मे आगमन 01 अगस्त 2018 को शुक्र कन्या राशि में प्रवेश कर चुके है जो 1 सितम्बर तक रहेंगे जो कई राशियो के लिए लाभ कारी होंगे आइये देखते हे की वो आपकी राशि में क्या शुभ अशुभ फल लेकर आता हे | मेष :- शत्रु स्थान में बुध की कन्या…

शुभकर्तरी:

शुभकर्तरी:- यदि लग्न से दूसरे तथा बाहरवें भाव में शुभग्रह हो, तो शुभकतरी योग बनता है। फल:- शुभकर्तरी योग में जन्म लेने वाला जातक तेजस्वी होता है उसके जीवन में आय के अनेक स्त्रोत होते है। तथा वह अर्थ संचय में भी प्रवीण होता है। शारीरिक दृष्टि से भी ऐसा जातक स्वस्थ्य, सबल और पुष्ट…

उभयचरीक योगः-

यदि किसी कुण्डली में सूर्य से दूसरे तथा बाहरवें दोनों भावो में ग्रह विद्यमान हो, तो उभयचरिक योग बनता है। फल:- यदि सूर्य से द्वितीय भाव तथा द्वादश भाव दोनों में शुभग्रह हो तो शुभ उभयचरिक योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सहनशील होता है। तथा प्रत्येक प्रकार की परिस्थिति को सहन करने में सक्षम…

वेशि योगः- यदि चन्द्रमा के अतिरिक्त कोई भी ग्रह या कई ग्रह सूर्य से दूसरे भाव में स्थित हो , तो वेशि योग होता है। फल:- यदि सूर्य से दूसरे भाव में शुभग्रह स्थित हो , तो शुभ वेशि योग तथा पापग्रह हो तो अशुभ वेशि योग होता है। शुभ वेशि योग में जन्म लेने…

वासी योग:

– यदि चन्द्रमा के अतिरिक्त कोई भी ग्रह या अनेक ग्रह सूर्य से बाहरवें स्थान में विद्यमान हो, तो वासी योग होता है फल:- वासी योग में जन्म लेने वाला जातक अपने कार्य में दक्ष होता है। यदि सूर्य से बाहरवें भाव में शुभग्रह हो तो, जातक प्रसन्न, निपुण, विद्यावान, गुणी और चतुर होता है।…

अमला योग:

अमला योग:- चन्द्रमा जिस लग्न पर बैठा हो, यदि उससे दसवे स्थान पर कोई शुभ ग्रह बैठा हो तो अमला योग होता है। यदि लग्न से दसवे स्थान पर शुभग्रह हो तो अमला योग माना जाता है। फल:- जिस जातक की कुण्डली में अमला योग होता है, वह प्रसिद्ध, गुणवान और ख्याति प्राप्त करने वाला…

गजकेशरी योग:-

गजकेशरी योग:- ” गजकेसरी संजातस्तेजस्वी धनधान्यवान। मेधावी गुण सम्पन्नों राजप्रिय करो भवते।। चन्दमा से केन्द्र में (1,4,7, 10 वे भाव में) बृहस्पति स्थित हो तो गजकेशरी योग होता है। यदि शुक्र या बुध नीचराशि में स्थित न होकर या अस्त न होकर चन्द्रमा को सम्पूर्ण दृष्टि से देखते हो तो प्रबल गजकेशरी योग होता है।…

उंगलिया

उंगलियों से भी व्यक्ति के स्वभाव के बारे में बताया जा सकता है जैसे-: लम्बी हो तो बारीकी, छोटी छोटी तफसील की तरफ ज्यादा ध्यान देना छोटी छोटी बातों का ज्यादा चिन्ता करना बताती है। छोटी उंगलियों वाले ज्यादा चिन्ता नहीं करते मस्त मोला होते है और जैसा है ठीक है ज्यादा सोच विचार नहीं…

यंत्र

यंत्र का महत्व मान कर उससे लाभ प्राप्त करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है प्रत्येक अविष्कार के मूल में उसकी आवश्यकता छिपी होती है। हम देखते है सदियों से दीपावली के दिन दुकान के दरवाजे पर यंत्र लिखवाने की प्रथा चली आ रही है। इस तरह से यंत्र साधना एक लंबे…